निठारी का सच, परत-दर-परत…. सुनील मौर्य

निठारी। अब भी आपके दिलोदिमाग में अच्छे से याद होगा। आगे भी याद रहेगा। क्योंकि अभी इसमें बहुत कुछ होना बाकी है। फैसला आना बाकी है। कई फैसले आ भी चुके हैं। लेकिन अंतिम फैसले का इंतजार हम, आपको ही नहीं देश के बाहर मौजूद लोगों को भी है। आखिर उन दो आरोपियों को क्या सजा मिले। मैं मोनिंदर सिंह पंधेर और सुरेंद्र कोली के लिए आरोपी शब्द का प्रयोग करना ही उचित समझ रहा हूं। यहां पर हैवान, नरपिशाच…. जैसे शब्दों का प्रयोग करना नागवार समझता हूं। माना कि दोनों पर रूह को कंपा देने वाले आरोप हैं। लेकिन वो दोनों भी हम जैसे इंसानों की बस्ती के बीच से ही निकलकर आए हैं। हमारे समाज से तालुक्कात रखते हैं। लिहाजा, कहीं न कहीं, उनके अंदर भी पहले इंसानियत रही होगी। जो बाद में हैवानियत (जैसा कि अब तक इनके लिए प्रयोग किया गया) में बदल गई। खैर, यहां हम आपको यह बताना चाहते हैं कि निठारी को मैने वर्ष 2005 से देखा है। इस केस के परत-दर-परत के बारे में मुझे पता है। जो शायद आम लोगों को नहीं पता है।
अक्सर मैं अपने घर या अन्य किसी जगह जाता हूं तो नोएडा में रिपोर्टिंग करने की जानकारी देते ही लोग बरबस ही पूछ लेते हैं कि आखिर क्या था निठारी कांड। आजकल आरुषि केस के बारे में भी पूछते हैं। आरुषि केस के बारे में भी मैं काफी अनछुए पहलू बताऊंगा लेकिन पहले निठारी।
उन लोगों को कुछ बताने से पहले मैं पूछता हूं कि आपकी नजर में क्या है निठारी कांड। नौकर और मालिक, आखिर आपकी नजरों में कौन है ज्यादा दोषी। अब यही सवाल मैं आपसे भी पूछता हूं। कौन है दोषी? शायद यही जवाब मिलेगा, दोनों। सच भी है। लेकिन पूरी तरह से नहीं। अब आप चौंक गए होंगे। आखिर यह क्या कह रहा है। लेकिन सच यही है। यहां मैं किसी के पक्ष और खिलाफ की बात नहीं कर रहा हूं। बल्कि हकीकत बयां कर रहा हूं। रिपोर्टिंग के दौरान और अब भी जब कभी मैं खबर लिखता हूं तो दोनों के खिलाफ जहर उगलता हूं। क्योंकि अगर ऐसा नहीं करते हैं तो पाठक कहेगा कि पत्रकार भी सरदार मोनिंदर से मिल गया। लेकिन यहां एक लाइन में आपको बता दूं कि वाकई में जब कभी निठारी के डी-5 कोठी में बच्चों का कत्ल हुआ उस दौरान मोनिंदर सिंह विदेश में था। सीबीआई की जांच में यह सच्चाई सामने आई है।
मोनिंदर सिंह की कॉल डिटेल मेरे पास है। जब कभी निठारी में बच्चों के कत्ल हुए उसका मोबाइल फोन लगातार कई दिनों तक बंद रहा है। इस पर मैने अपनी रिपोर्टिंग के दौरान एक्सक्लूसिव खबर की थी। उसमें लिखा था कि मोनिंदर सिंह पंधेर खास पैर्टन पर बच्चों का कत्ल करता था। वह घटना से एक या दो दिन पहले ही अपना मोबाइल फोन बंद कर लेता था ताकि किसी को उसके बारे में जानकारी नहीं मिले और वह शातिराना तरीके से घटना को अंजाम दे। लेकिन वाकई में उस दौरान मैं गलत था। सच्चाई, सीबीआई ले आई है। और वही हकीकत है। लेकिन हम मीडिया वाले इसे गलत करार देते हैं। क्योंकि इसे आसानी से पचाया नहीं जा सकता है। और आप पचा भी नहीं पाएंगे।

कहां है निठारी….

निठारी। राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा के सेक्टर-31 के पास निठारी एक छोटा सा गांव है। जो अब से 10 साल पहले जहरीली शराब कांड को लेकर चर्चा में आया था। एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। हालांकि मृतक के परिजनों के जेहन में अब भी वह याद है। लेकिन अन्य लोग यहां तक की मीडिया भी उसे भूल चुकी है। खैर, अब निठारी शब्द जेहन में आते ही खुद-ब-खुद मासूम बच्चों की चीख-पुकार उमड़ आती है। आंखों में एक खौफनाक दृश्य उभरता है। जिसमें एक कोठी के मालिक व नौकर मासूम बच्चों को किसी न किसी बहाने अपने पास बुला लेते हैं। इसके बाद उनके साथ हैवानियत की हदें पार कर देते हैं। बच्चों की हत्या करने के बाद लाश के टुकड़े-टुकड़े कर नाले में बहा देते हैं।

खूनी कोठी

खूनी कोठी नंबर डी-5। भला इसे कौन भूल सकता है। भुलाया भी नहीं जा सकता है। यहां एक या दो नहीं बल्कि 17 बच्चों की दर्दनाक मौत हुई। उनके साथ दुष्कर्म किया गया। इसके बाद गला घोंटकर हत्या कर दी गई। शव के कई टुकड़े किए गए। कुछ हिस्से को कोठी के पीछे तो कुछ को सामने के नाले में बहा दिया गया। यह सिलसिला डेढ़ साल से ज्यादा समय तक चला। लेकिन किसी की नजर इस कोठी पर नहीं पड़ी। इतना जरूर हुआ कि कोठी के पास स्थित पानी की एक टंकी के आसपास से बच्चों को गायब होने का शक जरूर हुआ। गांव वालों ने यहां तक मान लिया कि पानी टंकी के पास कोई भूत रहता है जो बच्चों को निगल जाता है। या फिर पानी टंकी के पास से ही कोई बच्चों को गायब करने वाला गिरोह सक्रिय है।
इस कोठी में मोनिंदर सिंह पंधेर रहता था। यह शख्स आईएएस की तैयारी भी कर चुका है। रिटेन एग्जाम निकाल इंटरव्यू देने की बात अब तक सामने आ पाई है। लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई। इस शख्स की करोड़ों की प्रॉपर्टी है। वह जेसीबी मशीनों की सप्लाई करने वाली कंपनी में बतौर सीनियर अधिकारी था। इसकी गिनती शहर के रईसजादों में होती रही है। इसने वर्ष 2005 में सेक्टर-31 डी-5 नंबर की कोठी खरीद ली थी। वजह थी, घर परिवार चंडीगढ़ में होने की वजह से नोएडा में रहने का ठिकाना। क्योंकि नोएडा में ही उसकी कंपनी थी।
अब नोएडा में परिवार नहीं होने की वजह से मोनिंदर सिंह पंधेर को एक नौकर की तलाश थी। इसलिए चंडीगढ़ में नौकरी कर चुके सुरेंद्र कोली को नोएडा बुला लिया। दरअसल, सुरेंद्र खाना बनाने में एक्सपर्ट था। खासतौर पर नॉनवेज बनाने में। इसलिए मोनिंदर सिंह ने उसे नोएडा अपने साथ रख लिया। वह कोठी में ही छत पर बने एक कमरे में रहने लगा। लेकिन महीने में अधिकतर दिन मोनिंदर सिंह पंधेर कहीं न कहीं टूर पर ही रहता था। लिहाजा, कोठी के मालिक की तरह सुरेंद्र ही रहता था।

एक कॉलगर्ल की नजर में पंधेर

मोनिंदर सिंह पंधेर कई कॉलगल्र्स के संपर्क में था। अब आप जरूर सोच रहे होंगे कि मुझे कैसे पता। तो मैं बता दूं कि मेरे पास पंधेर के मोबाइल फोन नंबर 9810098644 की 1 जुलाई 2006 से 30 दिसंबर 2006 तक की कॉल डिटेल है। इसका मैंने कई दिनों तक लगातार अध्ययन किया। उसमें से मैने कई नंबरों को शार्ट लिस्टेड किया। उन नंबरों पर कॉल किया। इनमें से कई नंबर कॉलगर्ल के निकलें। लेकिन किसी ने अपनी असलियत बताना मुनासिब नहीं समझा। अचानक एक खास नंबर लगातार आउटगोइंग कॉल पर नजर टिकी। मैने कॉल किया। जवाब मिला ‘हैलो, हू आर यूÓ। मैने कहा ‘ एम आकाश, फ्राम क्राइम इंवेस्टिगेशन टीम। आपका नंबर पंधेर की कॉल डिटेल में है। कई बार आपकी बातचीत हुई है। इसकी वजह। कैसे जानती हैं आप उसे।Ó इस तरह सवालों का लंबा-चौड़ा जाल फेंक डाला। ताकी सामने वाले को मेरी असलियत का पता ही न चले। अक्सर खबरों की खबर निकालने के लिए मैं ऐसी हरकत कर लेता हूं। जब कोई आसानी से मीडिया वाले को जवाब नहीं देता था। ऐसा करना मजबूरी भी हो जाती थी।
जवाब मिला ‘ हां, जानती हूं। मैने पूछा आपका नाम। जवाब दिया कि आप लोग कई बार पूछ चुके हैं। फिर क्यों? आखिर आप कौन हैं। मैं सब कुछ बताऊंगी लेकिन पहले आप सचाई बताएं। मुझे लगा ये औरों से अलग है। अंदाजा सही भी निकला। उसने अपना नाम क्रिस्टी बताया। नार्थ इंडिया की रहने वाली हूं। और आप, अभी तक नहीं बताया आपने।
उसकी ईमानदारी जानकर मैने भी अपनी असलियत उजागर कर दी। बता दिया मीडिया वाला हूं। वह थोड़ा हिचकिचाई। लेकिन थोड़ी देर बाद खुल गई। टूटी फूटी हिंदी बोलती थी। लेकिन सच बोलती थी। क्राइम कवर करता रहा हूं, तो इतना अंदाजा लगा लिया। मैने पूछा कि किस तरह की शख्सियत है पंधेर। सबसे पहले जवाब मिला कि आप लोग ‘उनकेÓ बारे में गलत लिखते हैं। नर पिशाच, हैवान…. ऐसे नहीं हैं वो। दिल के बहुत अच्छे हैं। खुशमिजाज इंसान हैं। सभी तरह से खुश रखते हैं। मुझे कई बार सूरजकुंड मेले में घुमाने भी ले जा चुके हैं। उनके साथ टूर पर देहरादून भी जा चुके हैं। मैने उनके साथ काफी हसीन पल गुजारे हैं। हर पल मुझे याद है। जब कभी वह टेंशन में होते थे मुझे याद करते थे। हम भी इसका इंतजार रहता था। कभी ऐसा नहीं लगा कि उनके दिल में प्यार के साथ हैवान भी छिपा है। ऐसा है भी नहीं। इतना करीब से जो देखा है। बच्चों से वह बहुत प्यार करते थे। इसका अहसास भी मुझे है। बच्चों के साथ कभी भी वह इस तरह हैवान नहीं बन सकते। इतना दावे के साथ कह सकती हूं। क्योंकि इतने रुपये हैं उनके पास जब चाहे उसे घर पर बुला सकते थे। इसलिए गरीब बच्चों के साथ हैवान बनना, कभी नहीं हो सकता। सपने में भी नहीं।
मैने पूछा कि कोठी में कितनी बार गई और क्या महसूस किया? जवाब मिला, कई बार गई। अक्सर जाती रहती थी। जब कभी वह बुलाते थे। कोठी में थोड़ा अजीब लगता था। लेकिन उनके होने पर महसूस नहीं होता था। लेकिन नौकर बहुत अजीबोगरीब नजरों से देखता था। उससे डर जरूर लगता था। उसकी हरकतें भी अजीब थी। इसलिए वह शराब और खाने का सामान पहुंचाकर चला जाता था। फिर वह पंधेर पर आ जाती है। कहती है लेकिन वह दिल के बड़े अच्छे थे। अपनी इच्छाओं को जताते थे। उसने यहां तक बताया था कि मैं कोर्ट में भी जाऊंगी और पूरी बात बताऊंगी। सीबीआई के कहने पर वह गाजियाबाद सीबीआई कोर्ट में गई थी। मशहूर फिल्म देवदास का डायलॉग है कि ‘तवायफ के पास भी दिल होता हैÓ। इससे पता चला कि माधुरी दीक्षित की रील लाइफ की तरह क्रिस्टी की रीयल लाइफ में पंधेर के रूप में एक देवदास था। जो शराब पीकर तो नहीं, जेल में अब आखिर की जिंदगी गुजार रहा है।

29 दिसंबर 2006 का वो दिन……

सुबह करीब 9 बज रहे थे। अच्छी खासी ठंड थी। इत्तफाक से उस दिन मैं जल्दी ही घर से बाइक लेकर नोएडा आ गया। शायद कोई प्रेस कॉंफ्रेंस होने वाली थी। टेलिफोन एक्सचेंज चौराहे पर पहुंचा था तभी मोबाइल फोन की घंटी बजी। जवाब मिला, निठारी से सतीश चंद्र मिश्रा बोल रहा हूं। पानी टंकी के पास कंकाल मिल रहे हैं। इतना सुनते ही मैं समझ गया कि गायब हो रहे बच्चों से जुड़ा मामला है। बाइक की रफ्तार अपने आप तेज हो गई। वहां से महज 5 से 10 मिनट में निठारी पहुंच गया। देखा लोगों की भारी भीड़ थी। पानी टंकी के पास यानी डी-5 कोठी के पीछे खुदाई चल रही थी। एक कंकाल, फिर दूसरा, तीसरा…. फिर…लगातार। कुछ देर में एक न्यूज चैनल वाले पहुंचे। उन्होंने खबर ब्रेक की। इसके बाद हलचल मच गया। चैनलों पर खबर देख निठारी से हजारों की संख्या में लोग इक्ट्ठा हो गए। उस समय तक इक्का-दुक्का पुलिसकर्मी मौजूद थे। लेकिन भीड़ देख नोएडा के अधिकतर थानों की पुलिस फोर्स जुट गई।
लोगों की चीख पुकार उमड़ पड़ी। निठारी ही नहीं, नोएडा के आसपास के जिलों से लापता हुए बच्चों के माता-पिता भी निठारी पहुंचे। चैनल के मीडियाकर्मियों में उत्सुकता बढ़ गई थी। जहां-तहां कैमरे तन गए। हर कोई एक्सक्लूसिव करना चाहता था। कोई कोठी के भीतर घुस जाता तो कोई छत पर। हर जगह मीडियाकर्मियों की भरमार। खुलासा हुआ कि निठारी से पिछले कई सालों से गायब हो रहे बच्चों को इस कोठी में मार दिया गया। मीडिया के सवाल लापता हुए बच्चों के मां-बाप के सीने में जहरीले तीर की तरह चुभते थे। उनका गुस्सा और भड़कता था। फिर भी सवाल की रफ्तार कम नहीं होती थी। सवाल पर सवाल। आखिर कैसे हुआ आपका बच्चा गायब। क्या लगता है आपको। कैसे मार दिया गया। पुलिस ने आपकी सुनी की नहीं। क्यों अनसुना कर दिया। आपके बच्चे का भी कंकाल मिला? यह सुनकर बच्चों के मां-बाप का गुस्सा भड़क जाता था। पुलिस को गालियां बकते थे। ज्यादा गुस्सा आया तो किसी पुलिस वालों की वर्दी पकड़ ली। सभी कैमरों की नजर वहीं टिक जाती थी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया। पुलिस की वर्दी पर थू-थू होने लगी। पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगने लगे। पुलिसवालों को मार डालों। हाथों में चूडिय़ां पहना दो। कोठी में आग लगा दो……वगैरा वगैरा। पुलिस के हाथों में डंडा था, लेकिन वह खुद पीट जाते थे। सामने से गालियां पड़ती थी, पर उसे अनसुना करने में ही भलाई थी। करते भी क्या, कैमरे की नजर जो हर जगह थी। दोपहर हो गया। प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लगभग अधिकतर रिपोर्टरों को निठारी बुला लिया गया। सबसे कहा गया, कुछ स्पेशल करने के लिए। किया भी सभी ने। यही हाल कैमरे वालों का। ज्यादा से ज्यादा मार्मिक और गुस्से वाला फोटो खींचों। आखिरकार, शाम आ गई। हम अखबार वालों को आखिरकार लौटना पड़ा ऑफिस।
कुछ भी नहीं समझ में आ रहा था कि आखिर खबर की शुरुआत कहां से की जाए। मार्मिक या फिर पुलिसकर्मियों की लापरवाही से। इसी में डेस्क पर कार्य करने वाले लोगों के सवालों का जवाब भी देना पड़ता। कैसे हो गया, क्यों हुआ, क्या किसी को भनक नहीं लगी, पुलिस सोती रही, पड़ोसियों को पक्का पता होगा, कितने बच्चे मारे गए, ………। अब एक सवाल का जवाब दो। तो उसमें भी कई सवाल। अब खबर लिखें या जवाब दें। खैर, खबर लिखी गई। एक नहीं, दर्जनों एंगल से। लेकिन हमेशा उत्सुकता होती कि आखिर कोठी के पास क्या हो रहा है। सभी साथी रिपोर्टरों ने भी खबर लिखी। सभी बच्चों के फाइल फोटो जुटाए गए। यह पता लगाया कि आखिर कितने लोग कोठी के शिकार हुए। फाइनल हुआ एक दर्जन से ज्यादा बच्चे। लेकिन पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई। एक ही पुष्टि हुई। वह थी 21 वर्षीय दीपिका उर्फ पायल। दरअसल, इसके लापता होने के बाद पायल का मोबाइल फोन सुरेंद्र कोली ने यूज किया था। पुलिस को शक था कि डी-5 में रहने वाले नौकर सुरेंद्र कोली ने ही उसे गायब करा दिया है। काफी कड़ाई से पूछताछ के बाद उसने केवल पायल की हत्या की बात कबूल की थी। इसलिए पुलिस को और बच्चों के गायब होने और बाद में कोठी में मार डालने की भनक नहीं लगी थी। लेकिन पायल का शव बरामद करने के लिए कोठी के पीछे पहुंची तो वहां कई कंकाल देखकर सभी लोग दंग रह गए। इसके बाद परत-दर-परत खुलती गई। धीरे-धीरे कर नौकर सुरेंद्र कोली ने बच्चों को किसी न किसी बहाने कोठी में बुलाकर उनकी हत्या, रेप करना और फिर शव को ठिकाने लगाने की बात कबूल कर ली। देर रात तक आधे दर्जन बच्चों को मारे जाने की पुलिस अधिकारियों ने पुष्टि की।————————————
फुटपाथ पर बैठकर मना नया सालहर साल की तरह वर्ष 2007 मनाने की भी सभी की तैयारी थी। मेरे कुछ साथी लोगों ने मनाली तो कोई हरिद्वार तो कहीं….और जाने के लिए टूर प्लान भी बना लिया था। तैयारी भी हो गई थी। ऑफिस से छुट्टी भी मिल गई थी। लेकिन निठारी में दो दिनों के माहौल और अंतर्राष्ट्रीय खबर बनते देख सभी की छुट्टी कैंसल कर दी गई। तमाम मीडिया कर्मी सुबह 7 बजे से ही कोठी के आसपास जुटने लगे थे। हमलोगों और तमाम पुलिस फोर्स को देख वहां चाय की कई दुकानें भी टेंपररी खुल गई थी। दुकान भी अच्छी चलती थी। क्योंकि एक तो सुबह बिना कुछ खाए-पीए निठारी चले आते थे। यहां आने के बाद कब समय निकल जाता था, पता ही नहीं चलता था। इसलिए चाय के साथ बिस्किट भी मिल जाए, तो थोड़ी पेट पूजा हो जाती थी। आखिरकार, पहली जनवरी को भी हमलोग ऐसे ही मिले। हमलोग एक दूसरे को बधाई भी देते थे। लेकिन चेहरे से नहीं दिखाते थे। क्योंकि पास में रोने-धोने की आवाजें आती थी। कोई अपने बच्चे की फोटो लिए हमलोग के पास पहुंच आता था। कहता था कि मेरे भी बच्चों को ढुढ़वा दो। हमलोग भी उसकी पीड़ा में शामिल हो जाते थे। तुरंत फोटो कराते थे। नाम और बच्चे की उम्र पूछते थे।
अगर दो या तीन लोग उससे पूछते थे तभी पीछे से दर्जनों मीडियाकर्मियों की भीड़ जुट जाती थी। इसलिए कि कहीं, इन लोगों के पास कोई एक्सट्रा जानकारी न हो जाए। इस तरह पीडि़तों की हर खबर हर जगह, चाहे वो प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक, सभी में आ जाती थी। अब ये बात अलग है कि उनके बच्चे के बारे में कुछ पता चला या नहीं, इस पर कोई गंभीरता से नहीं सोचता था। सोचता भी कैसे, हर रोज एक नई कहानी सामने आती थी। हर रोज, नए चेहरे दिखते थे। उनसे ही फुर्सत नहीं मिलती थी। तो पहले के मामलों का क्या हुआ, कहां से पता करते। खैर, इसी तरह चाय की चुस्की लेते हुए नए साल का पहला दिन गुजर गया। अहसास ही नहीं हुआ कि नया साल भी था। जैसे इस साल हुआ। या फिर पिछले साल हुआ।

अब से करीब पांच साल पहले 20 जून 2005 की दोपहर की बात है। आठ साल की बच्ची ज्योति खेलने के लिए निठारी के पानी टंकी के पास गई। लेकिन वह दोबारा घर नहीं लौटी। इससे पहले भी दो मासूम बच्चियां पानी टंकी के पास से ही गायब हुईं थी। ज्योति के पिता झब्बू व अन्य परिजनों ने उसकी बहुत तलाश की। लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। इसके कुछ दिनों बाद ही छह साल का हर्ष भी पानी टंकी के पास से गायब हो गया। ज्योति की तरह हर्ष का भी कुछ पता नहीं चला। इस तरह लगातार डेढ़ साल तक यह सिलसिला चलता रहा। एक के बाद बच्चे गायब होते रहे। लोग अपने बच्चों को पानी टंकी के पास भेजने से डरने लगे क्योंकि यहीं से बच्चे गायब हो जाते थे। पुलिस भी पहले इसे महज इत्तेफाक समझती रही। लेकिन जब एक दर्जन से ज्यादा बच्चे गायब हुए तो पुलिस को इसके पीछे कुछ गहरी साजिश नजर आई। पुलिस टीम को इसके पीछे बच्चों को गायब कर उन्हें देह व्यापार के धंधे में धकेलने वाले बेडिय़ा गिरोह पर शक हुआ। पुलिस की अलग-अलग टीमों ने एनसीआर के अलावा, मुंबई, आगरा, बिहार के कई जिलों समेत देश भर में जगह-जगह चक्कर लगाए। लेकिन कोई खास सुराग नहीं मिला। मिलता भी कैसे। पुलिस देश भर में चक्कर लगाती रही जबकि सुराग निठारी में मौजूद था।

लापता बच्चों का किसी भी तरह से नहीं मिल रहा था सुराग

निठारी केस की जांच में नोएडा पुलिस के सभी सीनियर अधिकारी से लेकर कई सब इंस्पेक्टर जुटे हुए थे। अधिकारी गाइड करते थे। लेकिन फील्ड वर्क सब इंस्पेक्टर करते थे। जगह-जगह घूमना और पूछताछ करने की जिम्मेदारी दो स्टार लगाने वालों के कंधों पर थी। इस केस की जांच में पुलिस ने बहुत मेहनत की। लेकिन लापरवाही भी पग-पग पर हुई। छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करना, नोएडा पुलिस की फितरत थी। रही है और लगता है आगे भी रहेगी। जबकि क्राइम के हर केस में सभी छोटी चीज काफी महत्वपूर्ण होती है। खैर, लापरवाही तो बहुत हुई। उसकी चर्चा बाद में। पहले, जांच अधिकारियों की बात।
इस केस की सबसे ज्यादा देर तक जांच की सब इंस्पेक्टर विनोद पांडे ने। निठारी से लगातार गायब हो रहे बच्चों की जांच करने वाली टीम कई बार बदली थी। लेकिन कुछ कॉमन रहा था तो वह है टीम में एसआई विनोद पांडे का होना। विनोद पांडे बताते हैं कि निठारी से गायब हुए बच्चों में ज्यादातर लड़कियां थी। इसलिए शक हुआ कि नोएडा में ऐसा गिरोह सक्रिय है जो बच्चियों को बहला फुसला कर उन्हें बेच दे रहा है या फिर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेल रहा है। क्योंकि इस तरह के देश-विदेश में कई मामले सामने आ चुके थे। लिहाजा, जांच की दिशा भी इसी के इर्द-गिर्द थी। यही वजह है कि मामला तूल पकडऩे पर गायब बच्चों के परिजनों को लेकर आगरा, बिहार, हरियाणा, राजस्थान से लेकर मुंबई तक के चक्कर लगाए गए। लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। परिजनों को जवाब नहीं दे पाते थे। आखिर क्या हुआ बच्चों के साथ। जमीन खा गई या आसमां निगल गया। इसके बावजूद जांच जारी रही।

पायल के गायब होने से आया नया मोड़

21 साल की लड़की पायल के 7 मई 2006 को निठारी से गायब होने की सूचना से पुलिस चौक गई थी। क्योंकि इससे पहले निठारी से गायब हुई सभी बच्चियां थीं। इस तरह जांच दो दिशाओं में बंट गई। एक बच्चों के लापता और दूसरा पायल की गुमशुदगी की तरफ। चूंकि मामला निठारी से जुड़ा था, इसलिए लापता बच्चों की जांच में जुटी पुलिस टीम को इस केस की फाइल भी पकड़ा दी गई। इस बारे में पायल के पिता नंदलाल लगातार पुलिस पर खोजबीन का दबाव बना रहे थे। पुलिस को जानकारी मिली कि पायल के पास एक मोबाइल फोन था। वह अब स्विच ऑफ आता है। इसलिए पुलिस ने उस नंबर की कॉल डिटेल निकलवाई। कॉल डिटेल में मुंबई से लेकर तमाम जगहों के नंबर पर थे। पुलिस ने उन नंबरों की जांच की। लेकिन हर जगह से पुलिस खाली हाथ लौट आई। एक खास नंबर पर कई इनकमिंग और आउट गोइंग कॉल देखकर पुलिस ने उस पर बातचीत की। वह नंबर मोनिंदर सिंह का पंधेर का निकला।
पुलिस ने उससे पूछताछ की तो उसने यह बताकर पल्ला झाड़ लिया कि नौकरी के लिए वह आती रहती थी। चूंकि पंधेर की गिनती बड़े रईसजादों में होती थी। इसलिए पुलिस उससे कड़ाई से पूछताछ नहीं कर पाती थी। लेकिन पायल का जब कहीं सुराग नहीं मिला तब जांच टीम ने पंधेर का देसी अंदाज में नार्को टेस्ट करने के लिए पुलिस अधिकारियों से इजाजत मांगी। जांच में जुटे तत्कालीन सीओ दिनेश यादव ने इसकी इजाजत दे दी।
3 दिसंबर 2006 को मोनिंदर सिंह पंधेर को सेक्टर-6 स्थित सीओ ऑफिस बुलाया गया। यहां पहले से ही पायल के पिता नंदलाल को भी बुलाया गया था। पंधेर के आने पर उसे एक कमरे में कैद कर लिया गया। जांच टीम ने उससे देसी नार्को टेस्ट के अंदाज में इंजेक्शन की जगह गालियों की डोज दी। पंधेर भी सकपका गया। आखिरकार उसने यह बात स्वीकार की कि पायल उसकी कोठी पर आती थी। पंधेर ने यह खुलासा किया कि पायल एक कॉलगर्ल थी।
यह जानकारी आपको चौंका सकती है। क्योंकि खूनी कोठी की शिकार हुई दीपिका उर्फ पायल खुद एक कॉलगर्ल थी और उसका बाप ही उससे यह धंधा करवाता था। इसके एवज में वह महीने में पंधेर से ‘सैलरीÓ भी लेता था। यही वजह है कि नंदलाल लगातार पुलिस पर दबाव बनाता था कि पंधेर का ही उसकी बेटी को अगवा करने में हाथ है। क्योंकि पायल के गायब होने के बाद से पंधेर कभी भी नंदलाल को फूटी कौड़ी भी नहीं देता था।
यह खुलासा खुद पंधेर ने नोएडा पुलिस के देसी नार्को टेस्ट में कबूल की थी। इसके बाद नंदलाल की बोलती बंद हो गई थी। वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। वहीं, पुलिस के सामने अब पंधेर बोलता ही जा रहा था। उसने यह भी उगल डाला कि ‘हां, मैं अय्याश हूं। कई कॉलगर्ल के संपर्क में हूं। उन्हें अक्सर कोठी पर बुलाता हूं। उनमें से ही एक पायल भी थी। उसे हमने सैलरी के आधार पर ही रख लिया था। इसलिए उसके पिता यह कहकर पुलिस से कंप्लेंट की कि उसकी बेटी नौकरी की तलाश में इंटरव्यू देने सेक्टर-31 डी-5 गई थी। इसके बाद लापता हो गई। भला, कोई बाप ऐसा कैसे हो सकता है कि अपनी बेटी को इंटरव्यू दिलाने के लिए किसी के ऑफिस नहीं बल्कि उसके घर पर भेजता था। एक बार नहीं, बार-बार।

थाना इंचार्ज को मिल गया मौका, धमकी देकर डकार गए 70 हजार रुपये

जब 3 दिसंबर 2006 को पंधेर सीओ ऑफिस आया था तो पूछताछ के लिए तत्कालीन सेक्टर-20 थाना प्रभारी बी.पी. सिंह भी मौजूद थे। पंधेर की कॉलगर्ल से संपर्क की जानकारी पाकर वह फूले नहीं समा रहे थे। निठारी से लापता हो रहे बच्चों के बारे में उससे पूछताछ करने की नहीं सोची। हां, इतना जरूर सोचा कि कैसे अब उससे मुर्गा बनाया जाए। सो वह अकेले में पहुंच गए पंधेर की कोठी। पढ़ा दिया कानून का पुलिसिया पाठ। हथकड़ी लग जाएगी। इज्जत का वाट लग जाएगी। जेल में सड़ जाओगे, अगर इस बयान को लिखा-पढ़ी में आ गई तो। यह सुनकर पंधेर डर गया। समझ भी गया, जो शख्स सीओ ऑफिस में गुमसुम था। वह अब दहाड़ क्यों रहा है। दहाडऩे की कीमत देनी होगी। सो, कमरे के भीतर ले गया। गर्म चाय पीने के लिए पूछा। चाय पिलाने के साथ कितनी महंगी बिस्किट चाहिए। यह भी पूछ डाला। कीमत लगी 70 हजार रुपये कैश। कीमत अदा कर दी गई। यह रकम पंधेर के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। इतने नोट तो वह न जाने कितनी बार बस पल भर की खुशी पाने के लिए उड़ा चुका था। यह तो दुख पहुंचाने से बचने की कीमत थी। रिश्वत देने का खुलासा पंधेर द्वारा सीबीआई को दिए बयान में भी है। इसके बाद पंधेर सेक्टर-20 थाने के कुछ पुलिसकर्मियों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गया। कई पुलिसकर्मियों ने अपने-अपने तरीके से सोने के अंडे पर हाथ साफ किया। लेकिन लापता पायल का क्या हुआ? गायब बच्चों का क्या हुआ? किसी ने भी पता नहीं लगाया। इस तरह न तो गायब बच्चों का राज खुला और न ही पायल का। जांच जस की तस रह गई।

ऐसे खुला पायल के गायब होने का राज़….

पायल के साथ ही उसका मोबाइल फोन भी गायब था। उसकी कॉल डिटेल से कोई सुराग नहीं मिला। इसलिए उस मोबाइल फोन को यूज करने वाले शख्स का पुलिस पता लगाने लगी। सर्विलांस में माहिर सब इंस्पेक्टर विनोद पांडे ही इसका पता लगा रहे थे। बात 21 दिसंबर 2006 की रात लगभग 9:20 बजे की बात है। इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस की मदद से पायल के गायब मोबाइल फोन का आईएमईआई नंबर (नंबर 355352003845870) चलने की जानकारी हुई। इस आईएमईआई नंबर को यूज करने वाले का पता लगाया गया। जानकारी मिली कि बरौला निवासी राजपाल उस मोबाइल फोन यूज कर रहा है। इस पते पर पुलिस की एक टीम पहुंची। उससे मुलाकात हुई। उसने बताया कि मोबाइल फोन में यूज किया हुआ सिमकार्ड मेरे नाम पर खरीदा गया है लेकिन उसका प्रयोग संजीव गुर्जर कर रहा है। पुलिस तत्काल संजीव के पास पहुंची। थोड़ी देर में ही उसके पास से मोबाइल फोन बरामद हो गया। पुलिस ने उससे कड़ाई से पूछताछ की। यह सोचकर अब पायल का कातिल उनके हत्थे चढ़ गया। लेकिन जब संजीव ने बताया कि उसने एक रिक्शे वाले से फोन खरीदा था तो पुलिस हैरत में पड़ गई। चूंकि रिक्शा वाला उस रास्ते से ही अपने घर जाता था। इसलिए उसके बारे में पुलिस को जानकारी मिल गई। आखिरकार, पुलिस रिक्शा चालक सतलरे के पास पहुंच गई। उसने पूछताछ में बताया कि पिछले महीने एक युवक उसके रिक्शे पर बैठकर सेक्टर-26 से निठारी सेक्टर-31 तक आया था। इस दौरान उसका मोबाइल फोन रिक्शे पर छूट गया। इसलिए उसे मैने अपसे रख लिया और बाद में बेंच दिया। इस तरह मोबाइल रखने वाले को लेकर सस्पेंस एक बार से बरकरार रहा।

27 नवंबर 2006 कॉल डिटेल से खुला खूनी कोठी का राज़

अगर दीपिका उर्फ पायल गायब नहीं हुई होती तो शायद ही लापता हो रहे मासूम बच्चों का रहस्य सुलझ पाता। पायल के मोबाइल फोन में नवंबर में यूज किए हुए सिमकार्ड की जांच की गई। उसमें पता चला कि 1 से 27 नवंबर के बीच पायल के मोबाइल फोन में 9871215328 नंबर का यूज किया गया। इसे सेक्टर-31 निठारी निवासी सुरेंद्र कोली के नाम पर खरीदा गया है। घनी आबादी से घरे निठारी में इस नाम के युवक का पता लगाना आसान नहीं था। हुआ भी यही, पुलिस पता नहीं लगा पाई। तभी कॉल डिटेल में 27 नवंबर 2006 की सुबह 11:07 बजे से लेकर दोपहर 1:13 बजे के बीच 01202453372 नंबर से 11 बार हुई बातचीत पर पुलिस की नजर टिकी। इस नंबर को देख एसआई विनोद पांडे चौंक गए। उन्होंने उस नंबर पर कॉल किया। शायद, पंधेर के ड्राइवर ने फोन रिसीव किया। सब इंस्पेक्टर को पता था कि कोई भी आसानी से कुछ नहीं बताएगा। इसलिए पुलिसिया शैली में पूछा कि, साले सुरेंद्र कोली बहुत शातिर समझता है। और भी गालियां…..। पुलिस वाली। यह सुनकर ड्राइवर सहम गया। उसने कहा कि सुरेंद्र तो गांव अल्मोड़ा गया है। उससे घर का पता पूछा गया। उसने बता दिया सेक्टर-31 डी-5।
इस तरह पुलिस को डी-5 कोठी के खिलाफ पायल को गायब कराने के पीछे पुख्ता सबूत मिल गए। यह बात है 24 दिसंबर 2006 की। पुलिस की एक टीम कुछ घंटे बाद ही कोठी पहुंची। वहां मोनिंदर सिंह पंधेर से मुलाकात हुई। पंधेर से पूछा गया कि कोली कहां है। वहीं, जवाब मिला कि वह गांव गया है। इसके बाद पंधेर को पायल के मोबाइल फोन और उसमें यूज किए हुए सिमकार्ड की जानकारी दी गई। यह जानकर पंधेर भी दंग रह गया। अब पुलिस ने नौकर सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार करवाने की जिम्मेदारी पंधेर के कंधों पर डाल दिया। पंधेर भी तैयार हो गया।

पंधेर ने ही पुलिस को पहुंचाया था कोली के घर तक

यह जानकार भी आप आश्चर्य में पड़ेंगे। दरअसल, पंधेर ने ही सुरेंद्र कोली का पूरा पता दिया और अपनी एक लग्जरी गाड़ी भी पुलिस को दी। साथ में ड्राइवर भी। चूंकि वह ड्राइवर कोली के घर जाने वाले रास्तों से वाकिफ था। इसलिए पुलिस की एक टीम पंधेर की गाड़ी से अल्मोड़ा पहुंची। वहां से किसी तरह पुलिस ने उसे हिरासत में लिया और गाड़ी में बिठाकर नोएडा आने लगे। 25 दिसंबर की शाम सभी लोग नोएडा पहुंचे। इससे पहले रास्ते में ही पुलिस ने सुरेंद्र की अच्छी खासी पुलिसिया खातिरदारी की। लेकिन उसने कुछ भी नहीं बताया। नोएडा में उसे पंधेर के सामने खड़ा किया। फिर भी उसकी जुबां चुप थी।
इसके बाद पुलिस ने उसे थर्ड डिग्री दी। फिर भी चुप। आखिरकार पुलिस टूट गई। लेकिन उसकी चुप्पी नहीं टूटी। उसके रवैये से पुलिस दंग रह गई। 27 दिसंबर भी निकल गया। आखिरकार, मुर्दे से भी उगलवाने वाले दरोगाओं को आजमाया गया। तब सुरेंद्र कोली की जुबां चली। जवाब दिया, हां मैने पायल को मार दिया। क्यों? सवाल पूछा गया। बताया- कि वो अक्सर पंधेर के पास आती थी। उसे मैने कई बार उत्तेजक स्थिति में देखा था। मुझसे भी काफी करीब से बातचीत करती थी। इसलिए पंधेर के नहीं होने पर फोन कर घर पर बुला लिया। वह आ भी गई। उससे सौदा किया। मेरे पास महज पांच सौ रुपये थे। लेकिन वह इतने कम रुपये में नहीं तैयार हुई। कई बार कहा। फिर भी नहीं। आखिर कब तक सुनता। गुस्सा आ गया। बहाना बनाया चाय पिलाने का। उसे कुर्सी पर बिठा दिया। थोड़ी देर बाद कुछ लेेने के बहाने उसके पीछे आया और उसके दुपट्टे से ही गला घोंटने लगा। विरोध किया। लेकिन मेरे खौफ के आगे वह खामोश हो गई। इसके बाद उसके साथ सेक्स किया। वह काफी बड़ी थी इसलिए उसके शव को तीन भाग में कर कोठी के पीछे फेंक दिया। उसके पास रखा मोबाइल फोन अपने पास रख लिया। यह सब पता लगाने में 28 दिसंबर की शाम हो गई।
28 दिसंबर की रात में ही पुलिस कोठी के पिछवाड़े पहुंची। यहां पहले पायल की सैंडिल मिली। पुलिस को यकीन हो गया। उसने जो कहा वह सच है। मांस के लोथड़े भी मिले। इस दौरान तक एक गांव वाले ने देख लिया था। लेकिन रात होने की वजह से उसने भी कुछ नहीं कहा। पुलिस ने भी रात में कोठी के पीछे ज्यादा खोजबीन करना मुनासिब नहीं समझा। यहीं पुलिस से चूक हुई। जिसके खामियाजे के रूप में पुलिस की वर्दी पर हमेशा के लिए ऐसा दाग लगा कि जिसे कभी भी मिटाया नहीं जा सकता। कभी भी नहीं। अगर पुलिस ने यहां तत्परता दिखाई होती और रात में खोजबीन करती तो 29 दिसंबर 2006 को नोएडा पुलिस का यह सबसे बड़ा गुडवर्क होता। मीडिया, पुलिस के खुलासे की सराहना करती। हां, टांग खींचना तो हमलोगों की फितरत है। उससे बाज नहीं आते। लेकिन फिर भी पुलिस जब खुद सब कुछ बताती तो संदेश गुडवर्क का ही जाता। पर पुलिस वालों के लिए काला दिन साबित हुआ।दर्जनों ककंाल मिले तब शक गहराया

दरअसल, 29 दिसंबर की सुबह तक यह नहीं पता था कि निठारी से गायब हो रहे बच्चों के भी तार कोठी नंबर डी-5 से ही जुड़े हैं। लेकिन भनक लगते ही गांव वालों ने ही कोठी के पीछे खुदाई शुरू कर दी। इस दौरान बच्चों के कंकाल भी मिले। कपड़े और चप्पलें भी। इससे पुलिस का शक अब यकीन में बदलने लगा। पुलिस ने तुरंत सुरेंद्र कोली से पूछताछ शुरू की। लेकिन इस बार शुरुआत में ही उसे पुलिसिया डोज दे दिया गया। लिहाजा, उसने चार से पांच बच्चों को मारने की स्वीकार की। लेकिन इस बार पुलिस को विश्वास हो चुका था कि लापता हुए सभी बच्चे नौकर के शिकार हुए हैं। पुलिस ने बच्चों के फोटो दिखाने शुरू किए तो उसने एक-एक कर 17 बच्चों को मारने की बात कबूल कर ली।

पंधेर के शामिल होने से किया था इनकार

नौकर सुरेंद्र कोली ने ही पंधेर को किसी भी बच्चे के अपहरण, रेप और हत्या के मामले में शामिल होने से इनकार किया था। पूछताछ के दौरान उसने यह बात स्वीकार की थी। उसकी सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने अलग-अलग पूछताछ की। ताकी वह किसी तरह के प्रेशर में रहे। इसके बावजूद उसने पंधेर को अपना साथी नहीं बताया। हां, इतना जरूर बताया था कि उसकी अय्याशी देखकर ही वह विकृत हुआ। वह पिछले एक साल से पंधेर की अय्याशी देखते-देखते उसकी विकृति बढ़ गई। इसलिए वह पंधेर की गैर मौजूदगी में बच्चियों को बुलाकर उन्हें हवस का शिकार बनाने में जुट गया।

नपुंसक है सुरेंद्र कोली

सुरेंद्र कोली नपुंसक है। मेडिकल परीक्षण में इस बात की पुष्टि हो चुकी है। उसकी शादी भी हुई है। लेकिन इसी वजह से वह अपनी बीवी को घर पर छोड़कर बाहर रहता था। उसने पूछताछ के दौरान यह बात स्वीकार की थी। यह भी बताया कि वह पास के ही एक मेडिकल स्टोर से उत्तेजित करने वाली दवाइयां भी खरीद कर लाता था। दवाइयों का सेवन करने के बाद वह घर के बाहर से गुजर रही लड़कियों को किसी न किसी बहाने घर में बुला लेता था। कभी टॉफी का लालच देता था तो कभी किसी और चीज का। मासूम बच्चों का क्या पता था कि टॉफी के बदले उन्हें मौत मिलेगी। वह भी वीभत्स। चूंकि बच्चों में लड़के और लड़कियों को दूर से देखकर पहचान करना आसान नहीं होता था। ऐसे में जब उत्तेजक दवाई का सेवन किया हुआ शख्स और नहीं पहचान पाता। इसलिए वह कम उम्र के लड़कों को भी लड़की समझकर कोठी में बुला लेता था। जबरन कपड़े निकालने पर जब उसे पता चलता था कि वह लड़का है तब वह आगबबूला हो जाता था। लड़का होने की वजह से वह छोड़ भी नहीं सकता था। क्योंकि उसकी पोल खुल जाती। इसलिए वह लड़कों को भी मार डालता था। इसके बाद शव के टुकड़े-टुकड़े कर रात होने का इंतजार करता था। रात होते ही धड़ को कोठी के पीछे जबकि अन्य हिस्से को सामने के नाले में बहा देता था।

नेक्रोफिलिया जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है कोली

नेक्रोफिलिया, यह ऐसी बीमारी है जिसमें इंसान शव के साथ सेक्स करता है। दरअसल, उसे इस बात का डर रहता है कि महिला उसका विरोध करेगी। वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाएगा। यह बात उसके दिमाग में सालों से रहती है। वह कोशिश भी करता है। लेकिन असफल होता है। ऐसे में वह इस कदर मानसिक रूप से विकृत हो जाता है कि शव के साथ ही सेक्स करता है। ऐसा वह आत्म संतुष्टी के लिए करता है।
नेक्रोफिलिया (necrophilia) ग्रीक शब्द से उभरा है। दरअसल, यह दो शब्दों का मेल है। नेक्रो(In Greek called Nekros) इसका मतलब मरा हुआ (Corpse or dead) और फिलिया (Philia : Friendship) मतलब दोस्त या आकर्षण। यानी शव के प्रति आकर्षण। ऐसी विकृति मिश्र में कई सदियों पहले भी होने के प्रमाण मिले हैं। वहां मरी हुई सुंदर महिला के शव को चार से पांच दिनों तक रखा जाता था। भारत ही नहीं पूरे विश्व में इस तरह की बीमारी से ग्रसित लोगों की संख्या भी बहुत है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस बीमारी से ग्रस्त होने में 10 से 15 साल लग जाते हैं। अचानक कोई भी इंसान इससे पीडि़त नहीं होता। जब वह सेक्स करने में असफल हो जाता है तो उसे सोच-सोच कर परेशान हो जाता है। सुरेंद्र कोली के मामले में भी ऐसा ही कुछ था। शादी के बाद से वह परेशान रहने लगा। उसकी इच्छा थी, लेकिन असमर्थ था। ऐसे में जब वह अक्सर मोनिंदर सिंह को पंधेर की हरकत को देखता था तब उसकी इच्छा और बढ़ जाती थी। यही वजह है कि वह अपनी हवस को शांत करने के लिए बच्चों को ही बुला लेता था। क्योंकि उसे इस बात का डर रहता था कि ज्यादा उम्र की लड़की उससे सहमत नहीं होगी।

लड़के को देख इतना गुस्साया कि कच्चा मांस खा गया

नौकर सुरेंद्र कोली के मानव मांस खाने की बात बिल्कुल सही है। लेकिन सभी बच्चों और अक्सर मांस खाने की खबर सरासर गलत है। गिरफ्तारी के दूसरे दिन ही पूछताछ के दौरान सुरेंद्र कोली ने यह बताया कि 8 साल के एक बच्चे का उसने मांस खाया था। वह भी कच्चा खा गया था। उसने बताया था कि बच्चे को लड़की को समझ कर मैने कोठी में बुला लिया। उसका मुंह बंद कर जब कपड़े उतारे तो पता चला कि वह लड़का है। इसके बाद वह इस कदर गुस्से में आया कि उसकी गला दबाकर हत्या कर दी। शव के टुकड़े करने के दौरान ही उसने कच्चा मांस भी खा गया। क्योंकि इससे पहले भी गलतफहमी में वह एक लड़के को लड़की समझ कोठी में लाकर मौत के घाट उतार चुका था।
यहां मैं उस बच्चे का नाम नहीं लिख रहा हूं। इतना जरूर बता दे रहा हूं कि उसके पिता निठारी में दुकान चलाते हैं। कोली की यह बात सुनकर पुलिस भी दंग रह गई थी। पूछताछ कर रहे पुलिसकर्मी खामोश हो गए थे। इस बारे में जब तत्कालीन एसएसपी आर.के.एस. राठौर को जानकारी हुई तो उन्होंने सभी पुलिसकर्मियों को सख्त निर्देश दिए कि यह बात मीडिया में नहीं आनी चाहिए। क्योंकि इससे मामला बिगड़ सकता है। बच्चे के परिजनों पर बुरा असर पड़ेगा।
पुलिस अधिकारियों ने मीडिया को तो नहीं लेकिन लखनऊ में एक सीनियर अधिकारी को यह जानकारी दे दी। दरअसल, नोएडा पुलिस की यह मजबूरी थी। क्योंकि वह लगातार निठारी पर अपडेट ले रहे थे। लेकिन उन अधिकारी ने इस बारे में एक न्यूज चैनल को जानकारी दे दी। यहां से यह जानकारी उस परिवार तक पहुंच गई।बच्चे की मां दो दिनों तक अचेत पड़ी रही

एक मां का कलेजा कैसे खामोश बैठ सकता है जब उसे पता चले कि उसके लाडले का कलेजा ही कच्चा खा लिया गया। बच्चे की मौत से वह सदमे में तो थी ही। लेकिन जब यह पता चला तो वह दो दिनों तक अचेत रही। इस बारे में भी मीडिया को भी कुछ भी पता नहीं चले। इसलिए इस पर पुलिस अधिकारियों ने पर्दा डाल दिया। बताया जाता है कि अब भी वह महिला कभी-कभार अचानक बेहोश हो जाती है।