218 रुपये की सैलरी पाने वाले जेपी गौड़ कैसे पह ुचे फर्श से अर्श तक

नोएडा – फर्श से लेकर अर्श तक का सफ़र तय करने के बाद दोबारा फर्श पर आ जाने का ग़म कैसा होता है ? इस बात को जेपी गौड़ से अच्छा भला कौन समझ सकता है। जी हाँ, वहीँ जेपी गौड़ जो जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड कंपनी (जेपी बिल्डर्स) के चेयरमैन हैं। बता दें कि जेपी बिल्डर्स को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्युनल की तरफ से दिवालिया घोषित कर दिया गया है। कंपनी पर 8 हजार 365 करोड़ रुपए का कर्ज है। जेपी गौड़ के द्वारा जेपी बिल्डर्स के एम्पायर को खड़ा करने के पीछे बड़ी हीं दिलचस्प कहानी है।

2 जनवरी 1931 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से करीब 7 किलोमीटर दूर स्थित गांव चिट्ठा में पैदा हुए जेपी गौड़ किसी ज़माने में महज़ 218 रूपये की सैलरी पर काम करते थे। काम करते हुए जेपी गौड़ को यह महसूस हुआ कि उन्हें सरकार की ओर से काम करने के सिर्फ 218 रुपए मिलते हैं, जबकि वहां काम करने वाले उनके साथ के कॉन्ट्रैक्टर्स हर महीने करीब 5000 रुपए कमा लेते थे। बस फिर क्या था, उन्होंने नौकरी छोड़ दी और यहीं से शुरू हुआ उनकी कामयाबी का सफर। आज के समय में उनका जेपी ग्रुप काफी बड़ ग्रुप बन चुका है। ग्रेटर नोएडा को आगरा से जोड़ने वाला 165 किलोमीटर लंबा छह लेन वाला यमुना एक्सप्रेस वे जेपी ग्रुप की ही देन है। इसे जेपी ग्रुप की जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड कंपनी ने बनाया है। पूरे दिल्ली एनसीआर में जेपी बिल्डर्स के करीब 32 हजार फ्लैट्स हैं, लेकिन अब जेपी बिल्डर्स को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्युनल की तरफ से दिवालिया घोषित कर दिया गया है। हालाँकि अभी नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को जेपी इंफ्राटेक कंपनी के पक्ष का इंतजार है, जिन्हें 270 दिनों का वक्त मिलेगा। अगर 270 दिनों में उन्होंने अपनी स्थिति सुधार ली तो ठीक है, वरना कंपनी की तमाम प्रॉपर्टी की नीलामी हो सकती है।