सत्तापक्ष के नेता ही डंकार रहे है, गरीबो का राशन

नोएडा : नोएडा शहर की गिनती हाइटेक शहरों में की जाती है । सूबे की प्रदेश सरकार द्वारा हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है । पर हकीकत इससे कोसों दूर है यहा आम आदमी रोज नई-नई समस्याओं से रूबरू होते है।"सबका साथ सबका विकास" का नारा लगाने वाली बीजेपी पार्टी क्या भूल गयी है । कि गरीब जनता ने उन्हें बढ़ चढ़ कर वोट किया तब जाकर पार्टी सत्ता में आयी। पर बदले में जनता को क्या मिला।आज उस गरीब जनता को सरकारी राशन तक भी नसीब नही हो रहा है।इसका कारण खुद पार्टी से जुडे नेता है। आप को बता दे, कि नोएडा सेक्टर 22 के चौड़ा गाँव की तो यहा आये दिन शिकायत मिलती है । कि सरकारी राशन की दुकान महीने में केवल एक या दो दिन खुलती है । जबकि नियम ये है कि दुकान रोज खुलनी चाहिए।आम आदमी अगर सरकारी सस्ते गल्ले दुकान के डीलर की बतायी तिथि पर नही पहुचता है तो उसको राशन नही दिया जाता है।चाहे उसकी कैसी भी समस्या क्यों न हो। लोगो की माने तो उनके राशन की डीलर कालाबाजरी करते है। बात करे नोएडा के चौड़ा गाँव सैक्टर-22 की तो यहा एक ही लाईन में पाँच दुकान सरकारी गल्ले की है जिसमें से एक दुकान जितेन्द्र सिंह व दुसरी गौरव जोशी के नाम से पंजीकृत है लोगों की माने तो जितेन्द्र सिंह की दुकान हरदम बंद रहती है। और उसका राशन गौरव जोशी की दुकान से ही वितरण होता है जबकि समस्या ये है कि एक डीलर अपनी ही दुकान का राशन लोगों तक नही पहुचा पा रहे है । तो वो दुसरी दुकान का माल कहाँ से लोगों तक पहुचा पाऐगा। सूत्रों की माने तो विवेक जोशी अपनी दुकान पऱ न आकर अपने भाई को भेज देता है पर वहा पर उसका भाई ना आकर एक सत्तापक्ष का नेता आता है जो अपने आप को विवेक का भाई बताता है।अब सवाल ये उठता है सत्तापक्ष का नेता तो गुप्ता है पर विवेक जोशी है।इसका मतलब कि एक बनिया दुसरा पडिंत। क्या दोनों भाई हो सकते है।नेताजी को अपना पहचान छुपाने की क्या जरूरत पडी थी।क्या वो कोइ अनैतिक कार्य करते है जो उन्हें अपनी पहचान छुपाने की जरूरत पड़ी।सत्तापक्ष के नेता के प्रभाव के कारण ही दुसरी दुकान जोकि जितेन्द्र सिंह के नाम से पंजीकृत है। उसका राशन भी इसी दुकान में रखा जाता है।लोगों का कहना है कि हमारे राशन की कालाबाजरी की जाती है।जब इस सम्बंध में क्षेत्रीय अधिकारी से बात की गई तो वो नेता के सामने नकमस्तक दिखायी दिये।सौने पर सुहागा ये की जब राशन साम्रगी का वितरण किया जाता है । तो वहा पर न तो कोइ प्रवर्षक न ही विभाग का अधिकारी मौजूद होता है।जिसके कारण ये लोग यहा खुला खेल खेलते है। लोगों की माने तो 6-6 महीने हो जाने के बाद भी उनके राशन कार्ड अभी तक नही मिल पाये है।बार-बार शिकायत करने के बाद भी क्षेत्रीय अधिकारी कुछ नही करते।इसके विपरीत जो सुविधा शुल्क दे देता है उसका राशन कार्ड बन जाता है।कुछ लोगों की शिकायत है कि जब से यूपी सरकार ने राशन के नए नियम बनाये है । हाथ के अंगूठे से मशीन के दुआरा पर मिलान होने पर ही राशन मिलता है अगर किसी कार्डधारी अंगूठा का मिलान नही हो पाता है। तो उसको राशन नही मिलता है । कुछ कार्डधारी राशन लेने से वचिंत रहते है दुसरी तरफ जो लोग सक्षम है उनको राशन मिल जाता है।हद तो तब हो जाती है जब कोइ विक्लांग या कैंसर पीड़ित व्यक्ति को भी राशन नही मिल पाता है।क्या विभाग के कर्मचारियों की मानवता भी मर चुकी है । जो कमजोर व लाचार लोगों की भी नही सुनती जबकि जो सुविधा शुल्क देता है।उसका काम आराम से हो जाता है।जब इस बारे में जिला पूर्ति अधिकारी से बात की तो उन्होने बताया कि अगर दो दुकानों का माल एक ही दुकान से वितरण होता है वह गलत है इसके खिलाफ कार्रवाई होगी।