ज़िंदगी एक एहसास

By Indu Maheshwari

ज़िंदगी ने आज उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जिसका ना तो आरंभ है और ना ही अंत है। अजीब सी दुविधा मन में आ बसी है बस मन में एक ही सोच कि आगे क्या होगा ? क्या वहीं प्यारी सी ज़िंदगी वापस आ पाएगी? और क्या वहीं दिनचर्या जो दिल को बहुत भाती थी -वो दोबारा आ पाएगी ?
बस इन्हीं विचारों के साथ कब सुबह हो जाती है और दिन भर घर की चारदीवारी में बंद यथावत काम करते करते रात को थकी सी बिस्तर पर लेटते ही नींद आ जाती है । कभी अचानक देर रात या भोर होते ही नींद टूटती है तो फिर एक डर का एहसास कि रात भर में क्या कुछ हुआ होगा सुबह एक नयी सूचना के साथ न्यूज़ पेपर का आना फिर उसी दुनिया में डुबो देता है ।
क्या है ये करोना —जिसने हर किसी को , किसी न किसी कारण से रोने को मजबूर कर दिया है । कहीं अकेलापन तो कहीं जीवन जीने के लिए संसाधनों का अभाव । वहीं कहीं अपनों की चिंता जो आँखों से बहुत दूर है पर दिल के बहुत क़रीब । अपनों से दूर जाने का एहसास या अपनों का बहुत दूर निकल जाने का एहसास अक्सर मन को विचलित करता रहता है । हर एक के मन में यही व्यथा चल रही है और इस पूरी दुनिया में मचे हाहाकार में यह छोटा सा मन दबकर रह जाता है— कि सिर्फ़ मेरे साथ साथ ही नहीं न जाने कितनों के घर उजड़ रहे है और न जाने कितनों पे यह मुसीबत भारी पड़ रही है ।
हे ईश्वर यदि तूने दिया है तो दूर भी तू ही करेगा इस विपदा को – हाथ जोड़कर ईश्वर से यही प्रार्थना कि इस समय को जल्दी ही निकाल दे ताकि अंधियारे के बाद उजियारे की किरण सबके जीवन को प्रकाशित कर दे और वहाँ सुख शांति फिर से आ जाए ।
सब ओर मचा हाहाकार है जीतेजी मौत सताती है ।
संघर्ष भरे इस जीवन में- पथ को कुछ आसान करो
हे राम रमापति महादेव- इस जग का कुछ कल्याण करो ।।