एक जैसी ही दिखती थी माचिस की वो तीलियाँ, कु छ ने “दीए” जलाये और कुछ ने “घर”

*यूं ही न अपने मिजाज*
*को चिड़चिड़ा कीजिये,*

*अगर कोई बात छोटी करे*
*तो आप दिल बड़ा कीजिये…*

*एक जैसी ही दिखती थी माचिस की वो तीलियाँ,*
*कुछ ने "दीए" जलाये और कुछ ने "घर",*

_*मिली हैं रूहें तो, रस्मों की बंदिशें क्या है,*_
_*यह जिस्म तो ख़ाक हो जाना है फिर रंजिशें क्या हैं,*_

*है छोटी सी ज़िन्दगी तकरारें किस लिए,*
*रहो एक दूसरे के दिलों में यह दीवारें किस लिए,*

_*खुशी के फूल उन्हीं के दिलों में खिलते हैं,*_
_*जो इंसान की तरह इंसानों से मिलते हैं,*_