अरविन्द आश्रम की पावन तपस्थली में आयोजित तन-मन-मानस की तृतीय श्रृंखला के अन्तर्गत प्रमुख वक्ता दीपक श्रीवास्तव ने श्रीरामचरितमानस के आलोक में जीवन में संघर्ष की उपयोगिता एवं संघर्ष के प्रकार के बारे में उपयोगी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो कम परिश्रम से अधिक सफलता प्राप्त कर लेते हैं किन्तु यह सफलता उनके जीवन में तभी स्थायी हो सकती है जब वे संघर्ष द्वारा स्वयं को और सबल बना लें। उन्होंने आगे बताया कि जब किसी सिद्धांत पर लोगों में मतभिन्नता होती है तब अक्सर तर्कपूर्ण बहस आधारहीन हो जाते हैं क्योंकि तर्क में पराजित व्यक्ति में मन में सिद्धांत से अधिक उनकी पराजय हावी रहती है तथा विजयी व्यक्ति के मन में विजय का अहंकार हावी होता है।
दीपक श्रीवास्तव ने मन में उपस्थित भ्रम को ज्ञान की तलवार ही काट सकती है किन्तु ज्ञान व्यक्ति में अहंकार की उत्पत्ति का कारण भी बन जाता है अतः जीवन में वैराग्य का होना आवश्यक है। जब ज्ञान सांसारिक मायारुपी भ्रम से युद्ध करता है तब वैराग्यरूपी ढाल ही भक्ति की रक्षा करती है। उन्होंने बताया कि श्रीराम ईश्वर के सगुण रूप में उपस्थित हैं तथा ईश्वर स्वयं कभी युद्ध नहीं करता, वह तो व्यक्ति के कर्म की आड़ में न्याय करता है। यहाँ वृक्ष कर्म का प्रतिविम्ब है। अतः पुरुषार्थवादी बालि सबल होने के बावजूद अपने ही कर्मों द्वारा बने प्रारब्ध से बच नहीं पाता तथा इसी की आड़ में ईश्वर द्वारा न्याय कर दिया जाता है।
दीपक श्रीवास्तव ने एक विचारणीय बिन्दु रखा कि प्रत्येक जीव लक्ष्यरूपी सीता की खोज में भटक रहा है। जहाँ भगवान् राम की कृपा है, वहां तो सभी वानर भालू एवं अन्य जीव निरन्तर सीता की खोज में संघर्ष कर रहे हैं। रावण द्वारा छल एवं बलपूर्वक सीता हरण के बाद भी रावण बेचैन है, प्रतिक्षण सीता के खोने का भय उसे अनेक प्रकार से अशान्त कर रहा है जिसके लिए उसे अनेक सुरक्षाकर्मियों के सहारे की आवश्यकता पड़ती है जो एक-एक करके समाप्त हो जाते हैं तथा सीता बंधनमुक्त हो जाती हैं। संघर्ष करते-करते वानरी सेना एक ऐसे स्थान पर पहुँचती है जहाँ सागर की विशाल लहरें उनकी क्षमताओं को चुनौती दे रही हैं तथा यहीं उन्हें अपनी अक्षमता का अनुभव होता है। जिसके जीवन में जितना तप है, उसकी उतनी ही क्षमता है। सागर को परास्त करने के लिए श्री हनुमानजी जितना धैर्य, संयम और बल चाहिए, जिसकी अनुकूलता प्राप्त करने हेतु अक्सर जीवों के प्रयास कम पड़ जाते हैं। अतः वानर सेना प्रभुनाम स्मरण के साथ धैर्यपूर्वक प्रतीक्षारत हो जाती है जब तक क्षमतावान श्रीहनुमानजी लौट नहीं आते। परिणामस्वरूप रावण अर्थात वासनात्मक वृत्तियों के नाश के पश्चात भक्तिस्वरूपा लक्ष्य अर्थात माता सीता से दर्शन एवं कृपा से सभी वानर एवं भालू कृतकृत्य होते हैं तथा लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि बच्चों को उनके नैतिक आदर्शों वाली यथार्थपरक कहानियों से जोड़ा जाना चाहिए जिससे उनके अन्दर अच्छे-बुरे की समझ के साथ संघर्ष, परिश्रम का आदर्श विकसित हो सके तथा वे बेहतर समाज के महत्वपूर्ण घटक बन सकें।
कार्यक्रम में अतिथि के तौर पधारे नोएडा की आवाज नाम से जाने जाने वाले प्रसिद्ध समाजसेवी श्री अशोक श्रीवास्तव ने कहा कि श्रीरामचरितमानस की रचना ही स्वयं में बहुत बड़े संघर्ष का प्रतीक है। गोस्वामी तुलसीदास ने 79 वर्ष की आयु में श्रीरामचरितमानस का सृजन प्रारम्भ किया जब रामरूपी महासागर को समझने में उन्हें 50 वर्ष से भी अधिक समय लगा तथा रचना में भी लगभग 14 -18 वर्ष लगे थे। तब कहीं जाकर श्रीरामचरितमानस जन-जन की आस्था एवं जाग्रति का केंद्र बन सकी। प्रसिद्ध कवि बाबा कानपुरी ने कहा कि समाज के लिए अच्छे साहित्य का सृजन प्रत्येक कालखंड की आवश्यकता है तथा इस प्रकार के कार्यक्रम निःसंदेह सामाजिक चेतना की दिशा में अत्यन्त सकारात्मक एवं उपयोगी हैं।
बैंगलोर से पधारे विप्रो डिजिटल के डायरेक्टर श्री राजेश श्रीवास्तव ने कहा कि श्रीरामचरितमानस के सामाजिक सन्दर्भों की व्याख्या विशेषतौर पर विद्यार्थियों एवं कारपोरेट जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है। कार्यक्रम में बोलते हुए एयरटेल कंपनी के नेशनल ऑपरेशन हेड श्री रवि प्रकाश ने कहा कि रामायण से हम सभी बचपन से ही अवगत हैं तथा व्यक्ति की दैनिक दिनचर्या में मानस से जुड़ी इस प्रकार की व्याख्या ईश्वर की कृपा बिना सम्भव नहीं है तथा व्यक्ति के जीवन के हर मोड़ पर ये आदर्श उसका पथ प्रदर्शन करने वाले हैं।
कार्यक्रम में श्री अशोक श्रीवास्तव, रवि प्रकाश, देवेन्द्र, राजेश श्रीवास्तव, बाबा कानपुरी, एस पी गौड़, नितेश गौतम, राजीव सिंह, अनिल श्रीवास्तव, भरतकुमार, तुषार गुप्ता, रॉकी शर्मा, स्वाति पाण्डेय समेत अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। कार्यक्रम के संयोजन में उमेश ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।