टेन न्यूज नेटवर्क
नोएडा (20 जनवरी 2022): भारतीय राजनीति में वर्तमान में सबसे प्रखर और चर्चित व्यक्तित्व हैं ‘अजय सिंह बिष्ट’ उपाख्य ‘योगी आदित्यनाथ’ गोरखपुर से पाँच बार सांसद, कट्टर हिंदूवादी छवि के सबसे मुखर प्रतिनिधि, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के मुखिया, एक प्रखर वक्ता, ओजस्वी व्यक्तित्व, देश के प्रभावशाली नेताओं में अग्रणी पंक्ति में खड़े हैं योगी आदित्यनाथ।
एक प्रश्न जो सामान्य जनमानस के मन में कई बार उठता है कि आखिर एक सामान्य सा व्यक्ति कैसे बना देश के सबसे बड़े सूबे का मुखिया?
सबसे पहले नजर डालते हैं योगी आदित्यनाथ के योगी बनने से पूर्व के जीवन पर
उत्तराखंड के गढ़वाल में एक सामान्य परिवार में पाँच जून 1972 को अजय सिंह बिष्ट उपाख्य आदित्यनाथ का जन्म हुआ, वह हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय गढ़वाल से विज्ञान में स्नातक हैं।योगी आदित्यनाथ के परिवार के लोगों का ट्रांसपोर्ट का व्यपार है।
अब हम अजय सिंह बिष्ट के योगी आदित्यनाथ बनने की यात्रा पर नजर डालते हैं
योगी आदित्यनाथ ने 15 फरवरी 1994 को नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली थी। ज्ञात हो कि महंत अवैद्यनाथ भी उत्तराखंड के थे।
गोरखनाथ मंदिर में लोगों की बहुत आस्था है. मकर संक्राति पर हर धर्म और वर्ग के लोग बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने आते हैं. महंत दिग्विजयनाथ ने इस मंदिर को 52 एकड़ में फैलाया था. उन्हीं के समय गोरखनाथ मंदिर हिंदू राजनीति के महत्वपूर्ण केंद्र में बदला, जिसे बाद में महंत अवैद्यनाथ ने और आगे बढ़ाया।
गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का उत्तराधिकारी बनाने के चार साल बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया।
एक नजर उस झगड़े पर डालते हैं जिसने अजय सिंह बिष्ट को बना दिया राजनीति का सिरमौर योगी आदित्यनाथ
बीबीसी के पत्रकार मनोज सिंह अपने आर्टिकल में लिखते हैं कि ‘बात दो दशक पहले की है. गोरखपुर शहर के मुख्य बाज़ार गोलघर में गोरखनाथ मंदिर से संचालित इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्र एक दुकान पर कपड़ा ख़रीदने आए और उनका दुकानदार से विवाद हो गया दुकानदार पर हमला हुआ, तो उसने रिवॉल्वर निकाल ली।
दो दिन बाद दुकानदार के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर एक युवा योगी की अगुवाई में छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया और वे एसएसपी आवास की दीवार पर भी चढ़ गए।
यह योगी आदित्यनाथ थे, जिन्होंने कुछ समय पहले ही 15 फरवरी 1994 को नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली थी। गोरखपुर की राजनीति में एक ‘एंग्री यंग मैन’ की यह धमाकेदार एंट्री थी’।
उत्तरप्रदेश की राजनीति का यह वही दौर था, जब गोरखपुर की राजनीति पर दो बाहुबली नेताओं हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही की पकड़ कमज़ोर हो रही थी।
युवाओं ख़ासकर गोरखपुर विश्वविद्यालय के सवर्ण छात्र नेताओं को इस ‘एंग्री यंग मैन’ में हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे महंत दिग्विजयनाथ की ‘छवि’ दिखी और वो उनके साथ जुड़ते गए।
अबतक योगी ‘हिंदुत्व के सबसे बड़े फ़ायरब्रांड नेता’ के रूप में स्थापित हो चुके हैं। यूपी में भाजपा ने फिर से उन्हें मुख्यमंत्री का कमान सौंपने का एलान किया है।
2016 मार्च में गोरखनाथ मंदिर में हुई भारतीय संत सभा में आरएसएस और भाजपा के बड़े नेताओं की मौजूदगी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया गया था।
जिस गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे, उसी सीट से योगी 1998 में 26 वर्ष की उम्र में पहली बार लोकसभा पंहुचे। पहला चुनाव वह 26 हज़ार के अंतर से जीते, पर 1999 के चुनाव में जीत-हार का यह अंतर 7,322 तक सिमट गया, मंडल राजनीति के उभार ने उनके सामने गंभीर चुनौती पेश की।
हिन्दू युवा वाहिनी का गठन
इसके बाद उन्होंने निजी सेना के रूप में हिंदू युवा वाहिनी (हियुवा) का गठन किया, जिसे वह ‘सांस्कृतिक संगठन’ कहते हैं और जो ‘ग्राम रक्षा दल के रूप में हिंदू विरोधी, राष्ट्र विरोधी और माओवादी विरोधी गतिविधियों’ को नियंत्रित करता है।
हिंदू युवा वाहिनी के खाते में गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर से लेकर मउ, आज़मगढ़ तक मुसलमानों पर हमले और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के दर्जनों मामले दर्ज हैं।
ख़ुद योगी आदित्यनाथ पर भी दंगा करने, सामाजिक सदभाव को नुक़सान पहुंचाने, दो समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने, धर्मस्थल को क्षति पहुंचाने जैसे आरोपों में तीन केस दर्ज हैं।
योगी के व्यक्तित्व के प्रभाव से गोरखपुर में उनकी जीत का अंतर बढ़ने लगा और साल 2014 का चुनाव वह तीन लाख से भी अधिक वोट से जीते।
घटना की शुरुआत महराजगंज ज़िले में पंचरूखिया कांड से होती है, जब दोनों के समर्थकों के झड़प में सपा नेता तलत अज़ीज़ के सरकारी गनर सत्यप्रकाश यादव की मौत हो गई।सूबे में कल्याण सिंह की सरकार थी, मामला सीबीसीआईडी को सौंपा गया, जिसने योगी आदित्यनाथ को क्लीन चिट दे दिया।
अगला मामला कुशीनगर ज़िले में साल 2002 में मोहन मुंडेरा कांड हुआ, जिसमें एक लड़की के साथ कथित बलात्कार की घटना के बाद गांव के 47 अल्पसंख्यकों के घर में आग लगा दी गई, इस मामले में भी योगी का दामन साफ सुथरा निकला। विपक्ष के दल बासपा और सपा अपने अपने कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ पर हिंसा भड़काने जैसे आरोप लगाते रहे थे, लेकिन इसके अबतक कोई ठोस सबूत नहीं मिल सके।
2002 में गुजरात की घटनाओं पर हिंदू युवा वाहिनी ने गोरखपुर बंद कराया था और टाउनहाल में सभा की सभा में ‘एक विकेट के बदले दस विकेट गिराने’ और ‘हिंदुओं से अपने घरों पर केसरिया झंडा लगा लेने की बात कही गई।’ योगी के समर्थकों द्वारा ‘गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना है.’ जैसे नारे लगते रहे हैं। बाद में तो यह नारा यूपी में रहना है तो योगी-योगी कहना है, में तब्दील हो गया।
जनवरी 2007 में एक युवक की हत्या के बाद हालात बिगड़ गए और प्रशासन को कर्फ़्यू लगाना पड़ा. रोक के बावजूद योगी द्वारा सभा करने के कारण उन्हें 28 जनवरी 2007 को गिरफ़्तार कर लिया गया।उनको गिरफ़्तार करने वाले डीएम और एसपी को दो दिन बाद ही मुलायम सरकार द्वारा सस्पेंड कर दिया था।
उनकी दिनचर्या
सुबह मंदिर में लगने वाले दरबार से होती है, जिसमें वह लोगों की समस्याएं सुनते हैं और उसके समाधान के लिए अफ़सरों को आदेश देते हैं।इसके बाद क्षेत्र में शिलान्यास, लोकार्पण और बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यक्रमों और बैठकों में व्यस्त हो जाते हैं।
योगी आदित्यनाथ फिल्में देखते हैं कि नही
दरसल कुछ दिन पूर्व 2018 में ‘सजंय लीला भंशाली ‘ द्वरा निर्मित सिनेमा पद्मावती पर आम लोगों ने काफी आपत्ति व्यक्त किया था, जिसके बाद इसे उत्तरप्रदेश में प्रतिबंधित कर दिया गया था। इस बाबत आजतक के एंकर राहुल कंवल ने जब उनसे फिल्में देखने को लेकर प्रश्न पूछा था तो उन्होंने कहा कि नहीं मैं फिल्में नही देखता हूँ।हालांकि हालिया दिनों में लल्लनटॉप द्वारा आयोजित जमघट में मुख्यमंत्री ने कहा कि “चुनाव के बाद कंगना रनौत की फिल्में देखने की इक्षा है।”
【नोट:उपरोक्त लिखित जानकारी बीबीसी के वेबसाइट ,योगी आदित्यनाथ के पुराने वीडियो क्लिपस, कुछ अखबारों के कटिंग एवं हमारे टीम के अध्ययन के सहयोग से एकत्रित किया गया है।】