राजतिलक की करो तैयारी,,,,, भगवाधारी आया है ।
सत्य सनातन वैदिक धर्म का,,,, एक पुजारी आया है ।
हथियार हाथ में जब पकड़ा तो आप शिवाजी शान लगे ।
गोरखपुर में जब गरजे तो,,,,, भारत की पहचान लगे ।
राजपूताना साफा बांधा,,,,,,,,, पृथ्वीराज चौहान लगे ।
जब कन्या के पैर छुए तो,,,, संस्कार की खान लगे ।
गौ माता को चारा डाला, लगते कृष्ण कन्हाई से ।
भाषण तुमने किया शुरू तो लगे अटल परछाई से ।
शतरंज सियासी जब जीता तो विश्वनाथ आनंद लगे ।
जब तुमने भगवा पहना तो,,,, स्वयं विवेकानंद लगे ।
हे देवभूमि के लाल तुमहे पाकर गर्वित परिवेश हुआ ।
कुर्सी भी हरसायी है,,,,,,और धन्य हमारा देश हुआ ।
भगवधारी सब मंचों पर,,,,,,,,, सदा दिखाई देता हूँ ।
मैं कलमपुत्र एक अदना बालक तुम्हें बधाई देता हूँ ।
सत्ता बड़ी नशीली है,, तुम झूल ना जाना योगी जी ।
कर्तव्य सदा सब याद रहे तुम भूल ना जाना योगी जी ।
गौ की गर्दन पर चलती,,, वो पैनी छुरी भी याद रहे ।
रामलला जंहा खेले है ,,,, वो अवधपुरी भी याद रहे ।
अवैधनाथ जो संत हमारे,,, उनकी साख भी याद रहे ।
निर्दोष बहन जो मुस्लिम है,, वो तीन तलाक भी याद रहे ।
ना फैले उन्माद धर्म का,,,,, ना मजहबी अखाड़ा हो ।
नही मुज्जफरनगर चाहिए,,, नाही कोई बिसाडा हो ।
हर मंदिर से रोज़ सुबह,,, आरती जय जगदीश चले ।
अगर भावना हो आहत तो लप्पड़ उसके शीश चले ।
जो खोया सम्मान हमारा,,, उसे दिला दो योगी जी ।
श्रीराम जैसा यू. पी. में ,,, राज चला दो योगी जी ।
—कवि अमित शर्मा (गाँव सैनी-ग्रेटर नोएडा)
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(कृपया नाम हटाने का पाप ना करे)