आपका परिवार आपका इंतजार कर रहा है…ट्रैफिक नियमो का पालन करे…अब नहीं सुनी देगे ये शब्द… नोएडा के ट्रैफिक बाबा नहीं रहे
आपका परिवार आपका इंतजार कर रहा है…. ट्रैफिक नियमो का पालन करे… सुरक्षित घर पहुंचे न माईक पर ये पुकार आपको नोएडा की सडको पर सुनाई देगी और न ही सफ़ेद चोगा पहने लोगों को पर्चे बांटता शख्स। नोएडा के लोगों को यातायात नियमों के पालन के लिए जागरूक करने वाले ट्रैफिक बाबा के नाम से मशहूर मुकुल चंद्र जोशी नहीं रहे। नोएडा के वाहन चालकों को 14 साल से यातायात नियमों के प्रति जागरूक करने वाले सेक्टर-21 स्थित जलवायु विहार में मुकुल चंद्र जोशी पत्नी शोभा जोशी के साथ रहते थे। 83 साल जोशी के दो बेटे हैं। ट्रैफिक बाबा ने जिस तरह की सेहतमंद जिंदगी जी उसी तरह उनका निधन भी हुआ। सुबह वह टहल कर आए और कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेटे और चिरनिंद्रा में सो गए। ट्रैफिक बाबा के इस निधन को नोएडावासी, पुलिस विभाग भी अपूर्णीय क्षति बता रहा है।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के गल्ली मोहल्ला निवासी मुकुल चंद्र जोशी वर्ष 1973 में वायु सेना से रिटायर हुए थे। 1995 में वह नोएडा आ गए थे। इनके दो बेटे हैं। बड़े बेटे 51 वर्षीय नीरज जोशी सिंगापुर में मर्चेंट नेवी में हैं, जबकि दूसरे बेटे 46 वर्षीय राजीव जोशी एयरफोर्स में ग्रुप कैप्टन हैं। यह बंगलुरू में कार्यरत हैं। नोएडा के लोग इन्हें ट्रैफिक बाबा के नाम से जानते थे। मुकुल चंद्र जोशी कैसे ट्रैफिक बाबा बने इसके पीछे एक ऐसी घटना है जिसने उनके जीवन को बादल कर रख दिया। जोशी के एक खास दोस्त के बेटे की 2003 में सड़क हादसे में मौत हो गई थी। वह उनका इकलौता बेटा था। मुकुल को इस हादसे में पता चला कि उसने हेलमेट नहीं लगा रखा था। बेटे की मौत के बाद उसके पिता बुरी तरह टूट गए थे। दोस्त का बुरा हाल देख मुकुल जोशी ने उस दिन से लोगों को जागरूक करने का निर्णय लिया। इसके बाद वह रोजाना 250 लोगों को पर्चे बांट नियमों का पालन करने के लिए जागरूक करते थे। अपने खर्चे पर नोएडा के अलग-अलग स्थानों हर दिन एक घंटा लोगो को यातायात नियमों के प्रति जागरूक करते थी।
मुकुल चंद्र जोशी ने हाल मे एक पत्र प्रधानमंत्री को लिखा था की अपने मान की बात कार्यक्रम इस विषय बारे में जरूर बात करे क्योकि सबसे ज्यादा सड़क हादसो में मृत्यु हमारे देश में होती है। ट्रैफिक बाबा एक ऐसे व्यक्ति थे जो नागरिक अधिकारों के साथ-साथ नागरिक का कर्त्तव्य भी समझते थे। उनका जाना एक जागरूकता अभियान के समाप्त होने जैसा है।