लेख चन्द्रपाल प्रजापति नोएडा
हिन्दू धर्म में भी सती प्रथा, बाल विवाह, बहुविवाह जैसी कुरीतियां थीं, जो समाज में विघटन पैदा करने वाली थीं। 1871 में राजा राममोहन राय और लॉर्ड विलियम बेंटिक के संयुक्त प्रयासों से हिंदू समाज से सती प्रथा का अंत हुआ। इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के अंतर्गत रखा गया। धर्म के ठेकेदारों ने इस फैसले का बहुत विरोध किया, लेकिन बडी संख्या में महिलाओं ने इसे सराहा। 1958 में राजस्थान हाई कोर्ट ने तेज सिंह वाद में सती होने के लिए उकसाने वाले को पांच साल कठोर कारावास की सजा सुनाई। इसके बाद सरकार ने सती (निरोधक) कानून,1987 बनाकर इस कुरीति पर पूरी तरह से रोक लगा दी। इसके अलावा, हिन्दू धर्म में बाल विवाह और बहुविवाह पर 1956 में फेमिली एक्ट के तहत आधा दर्जन कानून लागू कर रोक लगा दी गई। इन कुप्रथाओं का अंत पंडितों, पुजारियों या धर्म के ठेकेदारों ने नहीं किया, बल्कि भारतीय संविधान के अंतर्गत बने कानूनों ने किया। इससे उनके छद्म स्वाभिमान को ठेस तो पहुंची, लेकिन जनता ने इसे खुले दिल से स्वीकार किया। हिन्दू विवाह को संस्कार माना गया है,
19वी सदी में उठायें गए महिला प्रश्नों से भारतीय समाज में महिलाओं के जीवन में कई ऐतिहासिक परिवर्तन आएं। इन परिवर्तनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह था कि महिलाओं का जीवन अब बदलने लगा था। कट्टर पितृसत्ता की जड़ों को अब धीरे धीरे ढीला किया जा रहा था जिससे भारतीय समाज को आधुनिकतावादी प्रस्तुत किया जा सकें। 19वी सदी के उत्तरार्द्ध में महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु ब्रिटिश शासन के साथ कई राष्ट्रवादी, समाजसुधारक, सुधारवादी समूह (संगठन) औपनिवेशिक भारत के लगभग सभी भागों में उभरने लगे थें। इन सभी ने सबसे पहले भारतीय समाज की कुरीतियों को खत्म करने के लिए सक्रियता दिखायी तथा सभी सुधारकों व संगठनों का ध्यान सती, बालविवाह, बहुविवाह, कन्यावध, पर्दाप्रथा तथा देवदासी जैसी कुरीतयों को खत्म करने पर व विधवा पुनर्विवाह, स्त्री शिक्षा शुरू करने पर था।
इसी कड़ी में तीन तलाक जैसे भेदभाव और शोषण के विरुद्ध कुछ महिलाओं ने हिम्मत दिखाई। इसके अच्छे परिणाम मिले। सर्वोच्च न्यायालय (लोकसभा में भी विधेयक पास हो गया है ) ने मुसलमानों में सदियों से चली आ रही उस तीन तलाक प्रथा पर रोक लगा दी है जो मुस्लिम महिलाओं के लिए कष्ट का कारण बनी हुई थी। तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर रोक के मायने हैं कि अब फोन, चिट्ठी, ई-मेल, व्हाट्सएप और एसएमएस जैसे तरीकों से तलाक देने पर रोक लगेगी।
मुस्लिम समाज की लड़कियों के शोषण पर देश के सेकुलर और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग की खामोशी को क्या समझा जाए? दादरी कांड और अखलाक पर आकाश-पाताल एक करने वाले वामपंथी, सेकुलर दल और उनके स्वयंभू नेता इस मुद्दे पर मौन हैं। अरब देशों के कामुक शेखों द्वारा मासूम लड़कियों के देह शोषण और मानसिक वेदना के विरुद्ध आवाज उठाने वाला कोई है या नहीं? देश-दुनिया बदल रही है। ऐसे में ‘अरबी निकाह’ अर्थात मुताह जैसी कुप्रथा को समाप्त करने के लिए मुस्लिम समाज की महिलाओं को ही आगे आना होगा। देश के विकास में जितना योगदान पुरुषों का है, उतना ही महिलाओं का है। इसलिए महिलाओं के साथ सौतेला व्यवहार न हो।