पत्रकारिता को देश का चौथा स्तम्भ कहा जाता है , वो स्तम्भ जिस पर देश की नींव टिकी होती है। यह उन चार स्तम्भों में से है जिसे देश की जनता की आवाज माना जाता है और वैचारिक रूप से जनता का इनपर विश्वास होता है। बदलते समय के साथ पत्रकारिता में पत्रकारों की भूमिका पहले से ज्यादा संवेदनशील होती जा रही है। समय की मांग है कि इस पेशे में आपके द्वारा किया गया कार्य किसी को निजी तौर पर निराश ना करे , समय के साथ आज प्रिटं , इलेक्ट्रॉनिक मीडया के साथ साथ डिजिटल मीडिया ने अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली है।
पत्रकारिता के सदैव ही दो महत्वपूर्ण अंग होते है , एक पत्रकार व् दूसरा पाठक। लेकिन इसमें पत्रकार की भूमिका खास होती है , जो अपनी आँख कान खोल खबरों के प्रति वफ़ादारी व् ईमानदारी से चयन कर ,उस खबर को समाज व् देश के प्रति समर्पित करता है। पत्रकार समाज का आईना होता है और पत्रकार की ताकत उसकी कलम में होती है। पाठक इस संदर्भ में अपनी राय और विचारों के साथ एक पत्रकार को सही राह पर चलने हेतु उत्साहित करता है।
पत्रकार की पत्रकारिता उसकी निडरता व् दिलेरी पर निर्भर करती है , क्योकि बिना निडरता से आप सच्चाई से लिख नहीं सकते है , और पत्रकारिता की पहचान सच्चाई से होती है।
पत्रकारिता एक चुनौतीभरा व् जिम्मेदारी वाला कार्य है जिसमे एक गलत खबर, पत्रकार व् उसके संस्थान को भारी नुकसान पहुंचा सकती है और हर पत्रकार को अपनी सीमा का ध्यान रखना होता है। बेहद जरूरी है की पत्रकार को अपनी व्यावसायिक निष्ठा और गोपोनियता का अनुपालन करना चाहिए और साथ ही पत्रकार को अपने पद व् पहुंच का उपयोग किसी गैर संस्था के साथ नहीं करना चाहिए ।
पत्रकार को कभी भी किसी गलत खबर को लालच व् पेड न्यूज़ के तरीके से नहीं छापना चाहिए और पत्रकारिता की मूल भावना के अंतर्गत कभी किसी भी खबर के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए जो जैसी खबर है उसको वैसी ही दिखाना चाहिए क्योंकि एक पत्रकार का मकसद किसी को ठेस पहुंचना नहीं होना चाहिए ।
यह बेहद जरूरी है की पत्रकार को हर समय न्यायनिष्ठ व् निष्पक्ष होना चाहिए , और खबर की पूरी जानकारी उसके पास होनी चाहिए । किसी के निजी दुःख व् समाज ,धर्म , अपराध जगत से जुडी खबरों को पूरी जानकारी होने बाद ही पत्रकार प्रिंट ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व् डिजिटल मीडिया में प्रकाशित करे, क्योकि जरा सी गलती आपकी पत्रकारिता को ठेस पहुंचा सकती है।
इन सबके साथ ही पत्रकार को समाज के सभी वर्गों के साथ तालमेल मिला कर चलना चाहिए। खबरों को गतिपूर्ण तरीके से एकत्रित करना और अपने जिम्मेदारी का पूर्ण पालन सुनिश्चित करना दैनिक रूप से अनिवार्य है।
बढ़ती प्रतिस्पर्धा के साथ बदलाव की जरूरत
बदलते वक्त के साथ ही पत्रकारिता बेहद प्रतिस्पर्धापूर्ण होती जा रही हैं जहाँ प्रतिदिन नए विचारों को सीखना और नए ज्ञानवर्धन स्त्रोतों का इस्तेमाल करना बढ़ता जा रहा है। आज समाज और संस्थाओं को ऐसी पत्रकारों की जरूरत है जो समाज के विभिन्न वर्गों से तालमेल स्थापित कर उनकी समस्याओं को रेखांकित कर सकें।
पत्रकार में तर्क करने की छमता और शैली बेहद आवश्यक और साथ ही यह ज्ञान भी जरूरी है की कौन सी बात किस ढंग से कहाँ पर कही जाए। आम जनता, अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों से लगातार तालमेल मिला कर चलने वाले इस कार्यक्षेत्र में बेहद आवश्यक है की एक पत्रकार की भाषा शैली, बोलचाल और बातों को रखने का ढंग उत्कृष्ट हो।
इन सबके बीच यह भी कहना आवश्यक है की वैसे तो पत्रकार देश व् समाज का आईना होता हैं लेकिन पत्रकार के अंदर कुछ ऐसे अवगुण होते है या समय के साथ उत्पन्न हो जाते है , जिसकी वजह से पत्रकरिता क्षेत्र को कभी कभी शर्म से झुकना पड़ता है । आज के दौर में यह बेहद जरूरी है की कभी पत्रकार को खबरों को बढ़ा चढ़ा नहीं छापनी चाहिए , इससे समाज की एकता और समरसता को खतरा हो सकता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पत्रकारों को पेड न्यूज़ खबरों से बचना चाहिए । पत्रकारिता में व्यावसायिक जरूरत और वित्तीय जरूरतों के लिए प्रचार, विज्ञापन और स्पॉन्सर्ड न्यूज़ भले ही आज की जरूरत और सच्चाई है परंतु जरूरी हैं की ऐसी खबरें सदैव संतुलित हों और किसी को नुकसान पहुंचाने का कार्य न करें।
पत्रकारिता के क्षेत्र में आज का कड़वा सच
यह कहना अतिश्योक्ति ना होगी की आज के समय में पत्रकरिता में भी काफी बदलाव आ चूका है और अनेकों माध्यमों में पत्रकारिता पूरी तरह से पूंजीवाद के आगोश में आ चूका है जिसमें खबरों पर बाजार और सत्तानिष्ठ दृष्टिकोण हावी होता जा रहा है । इसके लिए कई कारणों में से एक यह भी है कि एक पाठक के रूप में हम त्वरित और सम्पूर्ण तथ्यपूर्ण खबरें तो पढ़ना चाहते हैं पर ऐसी पहल को तन-मन-धन से सहयोग करने में पीछे रह जाते हैं। खबरों को पूंजीवाद से मुक्त रखने के लिए समाज को आगे बढ़कर सहयोग करना चाहिए। पाश्चात्य शैली की सब्सक्रिप्शन बेस्ड न्यूज़ शैली भारत में लोगों की अत्याधिक रुचि ना होने के साथ अत्यंत सफल नहीं हो सकी। ऐसे में यह आज के युग का कड़वा सच है की लगभग सभी पत्रकारिता संस्थान पूर्णतः विज्ञापन और विज्ञापनदाताओं पर निर्भर हो कर रह गए है। इस पद्धति में बदलाव भी एक जागरूक पाठक ही ला सकता है।
पत्रकारों पर संकट
पत्रकारिता में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अब इस जगत में समय के साथ कदम मिला कर ना चल पाने और सीखने से परहेज करने वाले पत्रकारों पर नया संकट आता जा रहा है। पत्रकारिता के बदलते स्वरूप जिसमे सोशल मीडिया से खबरें तुरंत तेजी से प्रसारित होती हैं वहाँ गतिशीलता से काम ना कर सकने वाले लोगों को अनेक तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब एक पत्रकार के रूप में हम अपनी गलतियों को सुधारने की बजाए उन्हें ढाँकने के लिए कुतर्क का सहारा लेने लगते हैं। आज जरूरी है कि पत्रकार ना सिर्फ ईमानदारी व् निष्ठावान हो बल्कि अपने कार्य में दक्षता भी रखता हो।
जब से डिजिटल मीडिया ने अपने कदम इस क्षेत्र में पसारे है तब से स्थिति बेहद बदल गई है । प्रिटं, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल पत्रकारिता के संस्थान काफी बढ़ गए है और इस बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा में पत्रकारों की जिम्मेदारियों में भी इजाफ़ा हुआ है। आज के दौर में पत्रकारों को अपने हक़ के साथ- साथ अपनी जिम्मेदारियों का भी पूरा ज्ञान होना बेहद आवश्यक है। पत्रकार को अपनी छमता का मूल्यांकन स्वयं करना चाहिए। खबरों पर उसकी पकड़, प्रतिदिन उसके द्वारा लिखी जा रही खबरों की महत्ता और उससे उसके संस्थान से पाठक के रूप में जुड़ते हुए लोग ही एक पत्रकार की मेहनत का मूल फल हैं। सीखने से परहेज करने वाले पत्रकारों के लिए अब रास्ते बेहद मुश्किल होते जा रहें है। ऐसे में नए बेहतर अवसरों और पारश्रमिक में वृद्धि के लिए समय के साथ सीखतें रहना और अपनी दक्षता का बेहतर प्रदर्शन करना बेहद जरूरी हो जाता है।
चकाचौंध भरी नजर आती टीवी स्टूडियो की दुनिया के भी कई काले सच है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में कई बार संस्थानों के पास अपने खर्चे पुरे करने के लिए पैसे नहीं होते और कई बड़े संस्थानों तक द्वारा बड़ी मात्रा में एक साथ कई लोगों की छंटनी कर दी जाती है। अभी पिछले ही सप्ताह देश की एक अग्रणी समाचार संस्था ने अज्ञात कारणों से लगभग तीन सौ से ज्यादा पत्रकारों को एक साथ ही सेवा विरक्त कर दिया। इसलिए ऐसी दौर में एक पत्रकार को अपना स्वयं-मूल्यांकन करना और भी जरूरी हो जाता है।
ऐसी विचित्र स्थिति में यह भी बेहद आवश्यक हो जाता है कि एक पाठक और पत्रकार के रूप में हम अपनी जिम्मेदारियों को ना सिर्फ समझें बल्कि उन्हें पुरा करने के लिए पूर्ण ततपरता के साथ अग्रसर रहें।
अंत में एक बार पुनः संस्मरण करते हैं वो जो सदियों पूर्व संत कबीर ने कहा था :
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय |
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय ||