आलेख -चन्द्रपाल प्रजापति नोएडा
एक बार फिर हमारी धरती वीरों के रक्त से रंजित कर दी गई है। कायराना तरीके से पीठ पर हमलाकर पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों ने भारत माता के सपूतों की जान ले ली। कश्मीर के पुलवामा में हुई आतंकी घटना में भारतीय सेना के वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए। इस घटना से सारे देशवासी स्तब्ध हैं और इस घटना के जिम्मेदार लोगों को यथोचित सबक सिखाने को प्रेरित हैं। शहादत देने वाले जवानों के घरों में मातम पसरा है. परिजनों का रो रोकर बुरा हाल है। इस हमले ने दर्द की कई कहानियां छोड़ी हैं। किसी बच्चे के सिर से पिता का साया उठ गया है तो किसी मां-बाप ने अपने बुढ़ापे के सहारे को खो दिया है। लोगों में शहीदों के लिए गम के साथ ही आतंकियों के प्रति आक्रोश भी दिखा। भारत के लोग पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी से आतंकियों के खिलाफ खुल कर कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं। वही दूसरी ओर हमारे ही देश के टुकड़ों पर पलने वाली कुछ शहरी नक्सली अपनी राजनीतिक रोटियों को सेकने के चक्कर में इस हमले की आड़ में मोदी जी को दोषी बता रहे हैं। हम उनसे पूछते है कि क्या पूर्व सरकारों की दौरान हमले नहीं हुए? क्या 1200 वर्षों से हो रहे इस्लामिक हमलों के लिए भी मोदी जी उत्तरदायी है? नहीं। तो फिर यह बेशर्मी भरे बयान देकर आप लोग किस तथ्य को छुपाना चाहते हैं।
जिन वीरों ने शहादत दी है उनके साथ-साथ पूरे देश के हर घर में शोक पसरा है। इस शोक के नीचे स्वाभाविक रूप से गुस्सा भी है और यह गुस्सा बदला मांग रहा है। हम जिस दुश्मन से मुकाबला कर रहे हैं वो प्यार की भाषा नहीं समझता। उसे उसी के अंदाज में जवाब देना होगा। मगर क्या सीधा युद्ध कोई विकल्प हो सकता है? कोई भी विचारवान व्यक्ति कभी भी सीधे युद्ध की हिमायत नहीं कर सकता। युद्ध केवल अपरिहार्य स्थिति में किया जा सकता है और किया जाना भी चाहिए। ऐसे में सीमा पार पाकिस्तान में छिपकर बैठे कायरों को ‘जैसे को तैसा’ वाला जवाब उसी तरह से दिया जा सकता है जैसे इस सरकार ने उरी हमले के बाद दिया था। शर्त बस इतनी है कि इस बार इस देश को मौलाना मसूद अजहर का सिर चाहिए।
सर्जिकल स्ट्राइक के दावों पर सवालिया निशान उठाने वाले राजनीतिक दलों को भले ही जनता गंभीरता से नहीं लेती हो लेकिन गोएबल्स के अनुसार बार बार कहने से झूठ भी सच हो जाता है। दुनिया भर में तानाशाह के रूप में जो व्यक्ति कुख्यात रहा उसका नाम अडोल्फ हिटलर है, जिसका प्रचार मंत्री गोएबल्स हुआ करता था। उसका कहना यह था कि किसी भी झूठ को 100 बार अगर जोर से बोला जाए तो वह अंतत: सच लगने लगता है। सर्जिकल स्ट्राइक और राफेल के मामले में विपक्ष ने यही रणनीति अपनायी थी। ऐसे में सरकार यदि सीधे मसूद अजहर का सर देश को जनता को सौंपती है तभी गोएबल्स के सिद्धांत हवा में उड़ जायेगा।
जिस प्रकार कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को कविता के माध्यम से उसकी शक्ति को याद दिला था –चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता उपर सुल्तान है,मत चूको चौहान।। उसी प्रकार भारत की जनता प्रधानमंत्री से कह रही है कि इस बार चूक नहीं होनी चाहिए। हर बार दुश्मन को उसी के अंदाज में जवाब देने वाली सरकार से लोगों ने इस बार भी सख्त जवाब देने की उम्मीद लगाई है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। आखिर हम जानते हैं कि इस सरकार के पिछले पांच वर्षों के दौरान कश्मी्र के बाहर एक भी बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ है। यहां तक कि देश का पूर्वोत्तर भाग भी आज जितना शांत है उतना अतीत में कभी नहीं रहा। ऐसे में इस हमले के बाद भी हम यह उम्मीद करते हैं कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।