पिछली सरकारों में नोएडा में फ़्लैट रजिस्ट्री के लिए करना पड़ता था लम्बा संघर्ष : अमित गुप्ता, नोएडा प्रहरी

टेन न्यूज नेटवर्क

नोएडा (16-01-2022): टेन न्यूज से खास बातचीत में एक जागरूक नागरिक के बतौर पर अमित गुप्ता ने कहा कि “2014 से पहले सरकारें केवल लोगों को घुमाती थी, किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता था”। इस बाबत उन्होंने नोएडा की कई समस्याओं को हमसे साझा किया ।उन्होंने ‘इको सेंसिटिव जोन ‘ या ‘पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र’ की चर्चा करते हुए नोएडा के संदर्भ में अपनी बातों को रखा।

टेन न्यूज़ से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि 2014 से पहले ‘ओखला पक्षी विहार’ के आसपास के क्षेत्रों में निर्माण कार्य रुकवाने के लिए तत्कालीन सरकार सहित सभी बड़े नेताओं के पास चक्कर काटे ,लेकिन कुछ नहीं हुआ,उन्होंने नाम लेते हुए कहा कि ” देश में कांग्रेस की सरकार थी इसलिए नोएडा के बिल्डरों द्वारा अजय माकन के माध्यम से राहुल गाँधी से भी बात किया लेकिन कोई समाधान नही निकला”।

आगे बात करते हुए श्री गुप्ता ने कहा कि “2014 के बाद यह मामला अपने समाधान की ओर बढ़ा, और अब लगभग मामले का निस्तारण हो चुका है, थोड़ी बहुत चीजें न्यायालय में लंबित है, आशा है कि एक महीने के भीतर वो सभी समस्याओं का भी समाधान हो जाएगा”।

उन्होंने उस पूरे प्रकरण को टेन न्यूज़ से साझा करते हुए कहा कि ” 4 साल के लंबे अंतराल के बाद दिसम्बर 2015 में ‘इको सेंसिटिव जोन ‘ का मामला सुलझा तो लगा कि अब समस्या का समाधान हो गया लेकिन उसके बाद एक नई समस्या आई रजिस्ट्री की।क्योंकि नोएडा प्राधिकरण एक बिल्डर की एक दिन में 5 से अधिक रजिस्ट्री नही करता था, अब रजिस्ट्री करवाने के लिए बिल्डर आपसे 15 हजार रुपये वसूलने लगा , नही देने पर आपकी रजिस्ट्री नही होती”।

आगे उन्होंने अपने दर्द साझा करते हुए कहा कि” हमें बिल्डर द्वारा यह वसूली कुछ ठीक नही लगी और हमने बिल्डरों के खिलाफ CEO और DM से मिलकर लिखित में शिकायत किया, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ आखिर होता भी कैसे? बिल्डर ने हमसे पहले ही कहा था कि आप जँहा चाहो शिकायत करो हमारा कुछ नहीं होगा, अंततः हमने भी 15 हजार रुपया देकर अपने फ्लैट की रजिस्ट्री कराई”।

अब जानते हैं कि आखिर यह पूरा मामला क्या था?

दरसल ‘इको सेंसिटिव जोन पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र ‘ को कहते हैं, गौरव बंसल नाम के एक पर्यावरण प्रेमी द्वारा 2012 में याचिका दायर करने के बाद नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल द्वारा यह आदेश दिया था कि ‘उत्तर प्रदेश सरकार जब तक ओखला बर्ड सैंक्चुरी के आसपास के एरिया को इको सेंसिटिव जोन अधिसूचित करने से संबंधित नोटिफिकेशन जारी नहीं करती, तब तक बर्ड सैंक्चुरी के 10 किमी के दायरे के तहत निर्माण के लिए नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ से मंजूरी लेना जरूरी होगा। इस बीच, एनबीडब्ल्यूएल ही तय करेगा कि उस इलाके में चल रहे निर्माण कार्यों पर काम जारी रहेगा या नहीं, जिसके बाद बिल्डरों के लिए एक बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई थी।

याचिकाकर्ता गौरव बंसल का आरोप है कि बिल्डरों ने NGT में कई झूठे हलफनामे लगाकर ना सिर्फ अथॉरिटी से कई NOC ली है, बल्कि पर्यावरण और ओखला पक्षी विहार को भी नुकसान पंहुचाया है।

ज्ञात हो कि वर्तमान में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के 100 मीटर के दायरे को प्रतिबंधित करने का निर्देश दिया गया है।।