शपथग्रहण की तस्वीर कोने कोने में फैले हिन्दू धर्मावलंबियों के उम्मीद और भरोसे की तस्वीर है!

टेन न्यूज नेटवर्क

नोएडा (26 मार्च 2022): शुक्रवार को योगी जी जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले रहे थे तो वह तस्वीर अपने आप में बेहद खास थी। दरअसल वह तस्वीर देश के एक सबसे बड़े राज्य के नायक के रूप में शपथ लेते एक नेता भर की तस्वीर नहीं थी, बल्कि वह तस्वीर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी या असम से लेकर बंगाल तक फैले भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ ही दुनिया के कोने कोने में फैले हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए नई उम्मीद और नए भरोसे की तस्वीर थी।

वह तस्वीर थी उस उत्साह की जो सैंकड़ों सालो से रौंदने के बाद मंद हो गया। जिसने कल्याण सिंह के साथ अंगड़ाई ली और जो नरेंद्र मोदी के केंद्र में स्थापित होने के साथ उठ खड़ा हुआ। वह उत्साह जो योगी के शपथ लेने के साथ ही दुगुना, चौगुना होता चला जा रहा है। वह उत्साह जिसमे आक्रमकता नहीं है बल्कि खोई अस्मिता को प्राप्त करने की चमक है। जिसमे विद्रोह नहीं है बल्कि सर्वे भवन्तु सुखिन: का जाप है। जिसमें अतिरेक नहीं है बल्कि जियो और जीने दो का मूल मंत्र है।

योगी आदित्यनाथ की सदन में क्रंदन करती तस्वीर को अलग अलग तरीके से समय समय पर लोग प्रस्तुत करते रहे हैं। लेकिन उस तस्वीर के मायने बहुत बड़े हैं। वह तस्वीर वास्तविक योगी आदित्यनाथ की छवि है। वह तस्वीर स्वयं के प्राण भय के लिए याचना करते एक संत राजनेता की नहीं थी बल्कि वह क्रंदन सनातनी मनीषा को कुचल रहे लोगों के खिलाफ विद्रोह का प्रतिफल था। जिससे निकलकर योगी हीरा बनकर निकले। जिन लोगों के लिए उन्होंने अश्रुपात किया, उन्होने उन्हें सबकुछ दे दिया।

आप दृष्टिपात करिए कल्याण सिंह के पराभव के बाद वाले काल खंड का। हिंदुओं के पास संरक्षण के लिए हिन्दू युवा वाहिनी के अतिरिक्त कौन सा मार्ग था। बजरंग दल, विहिप भी जब किसी न किसी एजेंडे के चलते कदाचित शांत हो जाया करते थे तब योगी खड़े होते थे। योगी ने उस रिक्त स्थान की पूर्ति की, जिसके लिए एक पूरा समूह सदियों से चिंतन ही कर रहा था।

देवभूमि से निकला साधारण कद काठी का वह व्यक्ति हिंदू अस्मिता का प्रतीक पुरुष बन चुका है। जिस वस्त्र से वह आभूषित हैं, वह वस्त्र एक वस्त्र नहीं है। वह एक प्रतीक है। एक ऐसा प्रतीक जिसे लेकर इतिहास में अनेकों संघर्ष हुए। एक ऐसा प्रतीक जो एक समूह की पांच हजार से अधिक पुरानी जीत, हार, जय, पराजय, आनंद, उत्साह, विभव, पराभव का साक्षी है। वह वन वन घूमते मर्यादा पुरुषोत्तम का वस्त्र रहा है। रावण का वध करते राघव का वस्त्र रहा है। वह भुवन मोहन कृष्ण के गुरु संदीपनी का वस्त्र रहा है। वह समर में हर हर महादेव का नारा लगाकर जूझते वीर शिवाजी का निशान रहा है। वह एकलिंग की जय बोलकर मर मिटते राणा का प्रतीक रहा है। आज वह वस्त्र ब्रांड है। उस ब्रांड का एंबेसडर है योगी आदित्यनाथ।

योगी सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं हैं कि वे एक संत हैं। उनकी छवि कट्टर होने का तोहमत है। बल्कि योगी इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं कि वे सनातन की मूल परंपराओं के सर्वमान्य प्रतिनिधि हैं। मैं बार बार कहता हूं सनातनी होना वैज्ञानिक होना है। अंधविश्वास से लड़ने वाला होना है। मुझे वे योगी पसंद आते हैं जो मिथकों को तोड़कर बार बार नोएडा जाते हैं। मुझे योगी तब भी पसंद आते हैं जब कोरोना की विभीषिका में जमीन पर उतरने वाले वे पहले मुख्यमंत्री बनते हैं। मुझे वे योगी भी पसंद आते हैं जो सन्यास धर्म का पालन करते हुए पिता की मृत्यु पर शोक नहीं मनाते। मुझे वे योगी गर्वित करते हैं जो कहते हैं
प्रदेश की जनता मेरा परिवार है।

योगी के इस दूसरे कार्यकाल में विकास के सिवा क्या उम्मीद करना। बस नौकरी, विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा का ही काम है। धर्म की जय है। अधर्म का नाश हो रहा। प्राणियों में सद्भावना का भाव है। गो हत्या बंद है। विश्व कल्याण की भावना है।

सबकुछ तो उन्होंने कर दिया। सब जान रहे योगी को कानून व्यवस्था के नाम पर वोट मिले। राशन के नाम पर वोट मिले। इस बार तो उन्हे इस बात का जनादेश है कि जो जैसे चल रहा, वैसे ही चलता रहे। उनका रास्ता खरा है। एकदम खरा। बस इसी पर चलते रहें।

पूज्य पाद गुरू गोरखनाथ जी की जन्मस्थली से होने के चलते हम सबका उनसे अभिन्न संबंध है। गुरू गोरखनाथ की ही एक शबदी के साथ उन्हें दूसरे कार्यकाल की शुभ कामना देता हूं :

कोई न्यंदै कोई ब्यंदै कोई करै हमारी आसा
गोरख कहे सुनौ रे अवधू यहु पंथ खरा उदासा

अर्थात: कोई हमारी निंदा करता है, कोई प्रशंसा, कोई हमसे वरदान, सिद्धि चाहता है किंतु हमारा रास्ता तटस्थता, अनासक्ति और वैराग्य मार्ग का है।

चिंतामणि मिश्र (यूपी36)
(उपरोक्त लिखित विचार लेखक के निजी एवं स्वतंत्र विचार है)