सीमा रावत
नोएडा समाजसेविका
चारों तरफ हाहाकार मचा है भय और दहशत का माहौल है। आँखों की नींद गायब है। सवाल एक ही है… अब कौन ??
एक एक करके परिचितों में हो रही मौतों ने पिछले साल से कायम रखा हौंसला और उम्मीद दोनों को तोड़ दिया है। निष्ठुर हालातों के आगे खुद को इतना बेबस कभी महसूस नहीं किया।
समय बहुत धैर्य और संयम से परिस्तिथियों को काबू करने का है। पर जो लोग प्रयास कर रहे हैं वे भी समस्या का ग्रास बन रहे हैं। सरकार भी देर से सही अब प्रयासरत है। आमजन को भी समझना होगा, मुश्किल है पर और कोई विकल्प भी नहीं।
हाँ, इस आपदा से निपटने के बाद गहन रूप से ये सोचने विचार करने और कार्यान्वित करने की आवश्यकता है कि हमें जीवन की ऐसी अप्तयाशित परिस्तिथियों से निपटने के लिए भविष्य में क्या कदम उठाने हैं। शिक्षा हो, स्वास्थय हो या बाकी व्यवस्थाएँ , हमारी आधारभूत जरूरतें क्या हैं और हम कैसे सक्षम बने की ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए सिर्फ सरकारों के भरोसे न रहें।