टेन न्यूज नेटवर्क
नोएडा (19-01-2022): उत्तरप्रदेश में दबंगों का बोलबाला हमेशा ही रहा है, दागियों का खादी प्रेम कोई नई बात नहीं है। इस प्रथा की शुरुआत सूबे में अपराध की नर्सरी रही पूर्वांचल से ही हुई थी। जब पूर्वांचल के प्रभावशाली नेता ने वर्ष 1985 में जेल में रहकर ही चुनाव लड़े थे और जीत दर्ज की थी।
जिसके बाद तो मानो उत्तरप्रदेश की सियासत में बाहुबली और जेल से चुनाव लड़ने की परंपरा ही शुरू हो गई हो, इस सूची में पूर्वांचल के ही बाहुबली वीरेंद्र प्रताप साही, बाहुबली दुर्गा यादव व राजबहादुर सिंह आदि भी सलाखों के पीछे से चुनाव जीतने में सफल रहे।
1996 में माफिया मुख्तार अंसारी ने भी जेल से ही राजनीति का दामन थाम लिया और मऊ से विधायक बन गए,15 सालों के सलाखों के पीछे के सफर में अंसारी ने कई चुनाव लड़े, कुछ जीते और कुछ में हार का सामना करना पड़ा।
कल्पनाथ राय 1996 में। सलाखों के पीछे से ही चुनाव लड़े, माफिया ब्रजेश सिंह को जेल में रहते हुए ही एमएलसी बना दिया गया, इतना ही नही बाहुबली डीपी यादव, रायबरेली के बाहुबली नेता अखलेश सिंह सहित कई नाम इस फेहरिस्त में शामिल है।
विधानसभा चुनाव में भी ऐसे बाहुबलियों की लम्बी फेहरिस्त है अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन जो ओवैसी की पार्टी से प्रयागराज से मैदान में उतर रही है तो मुख्तार अंसारी का मऊ से उतरना लगभग तय माना जा रहा है, आजमखान भी तैयारी में है।
अब देखना यह है कि इसबार कितने बाहुबली सलाखों से निकलकर विधानसभा पंहुच पाते हैं।।