आदर्श धवन जी द्वारा दादी की रसोई पर विशेष लेख —-=विश्व खाद्द दिवस पर विशेष —
16 अक्तूबर का दिन विश्व खाद्द दिवस के रूप मे पूरे विश्व मे मनाया जाता है । इसकी शुरुवात 1979 में हुई जब यह महसूस किया गया कि विश्व में खाद्द समस्या विकराल रूप लेती जा रही है । खाद्द समस्या कभी भी विश्व में इतनी विकराल रूप में नहीं रही जितनी आज है और आने वाले समय में यदि कुछ उपचार नहीं समझे गए । अलग अलग वर्षों मे विभिन्न मुद्दों को ले कर वर्ष मनाया जाता है परन्तु भारत और सम्पूर्ण विश्व की शक्तियाँ क्या कुछ समाधान वाही कर्म करती हैं यह एक सोच का विषय है ?
इसी से जुड़ा है कुपोषण का मुद्दा और भुखमरी का मुद्दा । इस देश में सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 44% बच्चे कुपोषण के कारण कम वज़न के हैं और वहीं पर 32% अपने अधिक वज़न के या भारी है । बीमारी का शिकार दोनों हो सकते हैं । सीधा सा अर्थ है कि निर्धन परिवारों को पौष्टिक भोजन कम मिल रहा । यह भी विसंगति है कि देश में लगभग 84000 करोड़ रुपये का खर्चा सरकारी MID DAY MEAL के अंतर्गत विभिन्न राज्य और केंद्र सरकार का होता है । फिर भी बच्चे कमजोर हैं । यह अलग बात है कि इस पैसे से रसोई बनाना और बर्तन खरीदने के अतिरिक्त कर्मचारियों की तंख्वाह भी दी जाती है । क्या इस मात्र में दिये धन का सदुपयोग हो रहा है ?
इसी प्रकार एक और संस्था का Data मैंने खोजा तो पता चला कि कुपोषण में काम करने वाली संस्था (नाम नहीं दे रहा हूँ, जो चाहें मुझसे व्यक्तिगत रूप से ले लें website se निकाल सकते हैं) जिसका कुल कारोबार मात्र देशी और विदेशी सरकार के अनुदान और मात्र दान पर चलता है का कारोबार 171 करोड़ का है । उसमें से खर्चे को देखा तो लगभग 40 करोड़ की salary दी जाती है ।
हैरानी की बात है लाखों करोड़ों के खर्चे के बाद भी भारत में भुखमरी कि स्थिति ज्यों की त्यों बनी है । क्योंकि जो भी पैसा आता है वह भूखों के अतिरिक्त सब अधिक कामों में लग जाता है। जबकि यदि यह पैदा सही ढंग से खर्च हो तो यह स्थिति बदल सकती है
आइये आपको इसका छोटा सा उदाहरण प्रस्तुत है, नोएडा सेक्टर 29 स्थित समाज सेवइयों से चलने वाली दादी की रसोई आज के जमाने की महंगाई में भी लोगों को 5 रुपये में भोजन दे पाती है । रोज़ 12 से 2 बजे के बीच के समय में सभी आते हैं और कतार लगा कर भोजन करते हैं । 2 बजे के बाद और 12 बजे से पहले आप उस स्थान पर कोई चहल पहल या गतिविधी को नहीं पाएंगे । 2 बजे भोजन के साथ साथ सभी सफाई भी हो जाती है तो स्वछता अभियान भी चलता रहता है । रोज़ लगभग 300 से 500 लोगों का भोजन वहाँ हो जाता है । यह कैसे होता है उसके लिए जमीनी हकीकत को समझने की ज़रूरत है । इसका उद्देश्य था मात्र भोजन करवाना न कि इसके सहारे किसी प्रकार के संस्थान को चलाना । इसीलिए न तो विशेष जगह बनाई गई न विशेष रूप से जगह खरीदी गई । मतलब सही शब्दों में overhead expenses नहीं रखे गए । बस लोगों में आज भी अच्छे कामों में सहयोग की ब हावना है परन्तु सही में सामाजिक कर्म होते नहीं नज़र आते है ।
इस सामाजिक काम में लोगों नें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया । आप समझें सब्जी वाला अपनी लागत मूल्य पर सब्जी देता है, चावल मसले इत्यादि भी उचित मूल्य पर लोग देते हैं । एक तरह से सबने अपने ढंग ढंग से सहयोग किया । हमारे सबके प्यारे अनूप खन्ना जी और उनकी टीम इसका संचालन करते हैं । पूति निष्ठा के साथ आपके पूरे वर्ष एक होली की छुट्टी के अतिरिक्त 364 दिनों तक यह सेवा करती मिलेगी ।
यदि एक छोटी सी संस्था नोएडा जैसे शहर में बिना सरकारी सहायता या अनुदान के यह कर सकती है तो इतने दावे करने वाली सरकारों को इस सबसे सबक लेना चाहिए । बड़ी बड़ी स्वयं सेवी संस्थाएं जिनको सरकार 80G के प्रावधान से नवाजती है भारतीयों से दान के नाम पर करोड़ों रुपये ले कर इस देश को कितना कुपोषण से मिक्त कर रही है इसके आकलन की आज बहुत आवश्यकता है ।