नौएडा सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में तापमान के छह डिग्री सेल्शियस से भी नीचे पहुंच जाने के कारण कंपकंपी और ठिठुरन बढ़ने से ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं और ऐसे में न्यूरो विशेषज्ञों ने लोगों से ठंड से बचकर रहने की सलाह दी है।
नौएडा के फोर्टिस हाॅस्पिटल के ब्रेन स्ट्रोक विशेषज्ञ एवं न्यूरो सर्जन डाॅ. राहुल गुप्ता ने बताया कि पिछले करीब एक सप्ताह से उनके पास हर दिन ब्रेन स्ट्रोक के मरीज आ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों के दौरान उनके पास ब्रेन स्ट्रोक के तीन गुना अधिक मरीज आ रहे हैं और ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में वृद्धि के लिए ठंड जिम्मेदार है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में भीषण ठंड के कारण 70 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
डाॅ. राहुल गुप्ता बताते हैं कि अत्यधिक ठंड में होने वाली मौतों का मुख्य कारण ब्रेन स्ट्रोक एवं हार्ट अटैक होता है। उनके अनुसार सर्दियों में ब्रेन स्ट्रोक और खास तौर पर हेमोरेजिक स्ट्रोक के मामले अन्य महीनों की तुलना में करीब तीन गुना अधिक बढ़ जाते हैं।
उनके अनुसार सर्दियों में शरीर का रक्त चाप बढ़ता है जिसके कारण रक्त धमनियों में क्लाॅटिंग होने से स्ट्रोक होने के खतरे बढ़ जाते हैं। ब्रेन स्ट्रोक का एक प्रमुख कारण रक्त चाप है। रक्तचाप अधिक होने पर मस्तिष्क की धमनी या तो फट सकती है या उसमें रुकावट पैदा हो सकती है।
इसके अलावा इस मौसम में रक्त गाढ़ा हो जाता है और उसमें लसीलापन बढ़ जाता है, रक्त की पतली नलिकाएं संकरी हो जाती है, रक्त का दबाव बढ़ जाता है। धमनियों की लाइनिंग अस्थायी रूप से क्लाॅट के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। अधिक ठंड पड़ने या ठंडे मौसम के अधिक समय तक रहने पर खासकर उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों में स्थिति अधिक गंभीर हो जाती है। इसके अलावा सर्दियों में लोग कम पानी पीते हैं जिसके कारण रक्त गाढ़ा हो जाता है और इसके कारण स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। उनका सुझाव है कि सर्दियों में अधिक मात्रा में पानी तथा तरल पीना चाहिये।
डाॅ. राहुल गुप्ता के अनुसार बहुत ठंड के कारण हृदय के अलावा मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों की धमनियां सिकुड़ती हैं, जिससे रक्त प्रवाह में रुकावट आती है और रक्त के थक्के बनने की आशंका अधिक हो जाती है। ऐसे में ब्रेन स्ट्रोक, दिल के दौरे तथा शरीर के अन्य अगों में पक्षाघात होने के खतरे अधिक होते हैं।
डाॅ. राहुल गुप्ता के अनुसार कई अध्ययनों से पता चला है कि कम तापमान होने पर स्ट्रोक होने तथा स्ट्रोक के कारण मौत होने का खतरा बढ़ता है, खास तौर पर अधिक उम्र के लोगों में। इसलिये लोगों को अपने शरीर को गर्म रखने के लिये अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। इसके अलावा स्ट्रोक से बचने के लिये शराब और धूम्रपान का सेवन कम करना चाहिए।
सर्दी के महीनों में, जिन लोगों को न्यूरोलाॅजिकल समस्याएं हैं उनकी समस्याएं बढ़ सकती है। तापमान घटने से नर्व में दर्द बढ़ सकता है। डाॅ. राहुल गुप्ता का सुझाव है कि जिन लोगों को नर्व दर्द, रीढ़ में दर्द, ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया, मांसपेशियों में कड़ापन और संवेदना में कमी जैसी न्यूरोलाॅजिकल समस्याएं हैं उन्हें अधिक ठंड से बचना चाहिए।
अत्यधिक ठंड का मौसम शुरु होते ही, बच्चों में सिर दर्द होने का खतरा 15-20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। ऐसा विशेष रूप से उन बच्चों को अधिक होता है जो माइग्रेन से ग्रस्त होते हैं।
छोटे बच्चे सिर दर्द या अन्य समस्याओं के बारे में ठीक से नहीं बता पाते हैं, बल्कि वे इसे अन्य तरीकों से प्रकट करते हैं। जैसे, वे चिड़चिड़े और जिद्दी हो जाते हैं और उन्हें सोने और खाने में समस्या हो सकती है।
इसके अलावा अधिक ठंड में चेहरे में लकवा मारने (फेसियल पारालाइस) का भी खतरा होता है इसलिए अगर आप सुबह और शाम को घर से बाहर निकलें तो चेहरे को अच्छी तरह ढक लें। फेसियल परालाइसिस के मरीज आंखें नहीं खोल पाते, चेहरा टेढ़ा हो जाता है और मुंह के जरिए कुछ भी उगल नहीं पाते।
उन्होंने कहा कि बहुत ठंड में खुले में मोटरसाइकिल चलाना खतरनाक हो सकता है क्योंकि मस्तिष्क की सात नर्व कान के जरिए गुजरती है और बहुत अधिक ठंड होने पर जिस टनल के जरिए ये नर्व गुजरते हैं उसमें सूजन आ जाती है जिससे फेसियल पारालाइसिस होता है। यह समस्या युवकों को भी हो सकती है।