लेखक – चन्द्रपाल प्रजापति नोएडा
पद्मावती चित्तौड़ की महारानी थीं। वे राजा रतन सिंह की पत्नी थीं जिन्होंने अपनी इज्जत बचाने के लिए जौहर किया था। उनकी कहानी पर ही संजय लीला भंसाली ने फिल्म बनाई है। जो लोग पद्मावती को मात्र कल्पना मान रहे हैं और हिंदुओं की भावना को कुचल रहे हैं, वे वास्तव में इतिहास को झुठला रहे हैं। ये लोग अलाउद्दीन की लंपटता-कामुकता को नजरअंदाज कर उसे ‘प्रेम-पुजारी’ बता रहे हैं जौहर का सहारा लेकर पतिव्रता स्त्रियां अपनी आन-बान की रक्षा करती थीं और इस तरह शत्रुओं के हाथों में पड़ने से खुद को बचाती थीं। करणी सेना, बीजेपी लीडर्स, क्षत्रीय समाज और हिंदूवादी संगठनों समेत देश के कई संगठनों ने विरोध जताया है। राजपूत करणी सेना का मानना है कि इस फिल्म में पद्मिनी और खिलजी के बीच सीन फिल्माए जाने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची। फिल्म में रानी पद्मावती को भी घूमर नृत्य करते दिखाया गया है। जबकि राजपूत राजघरानों में रानियां घूमर नहीं करती थीं।
मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान बड़े राज्य हैं। यहां पर फिल्म के रिलीज न होने का सीधा असर फिल्म के कलेक्शन पर पड़ेगा। ये तीनों हिन्दी भाषी राज्य हैं जहां मल्टीप्लेक्स और सिंगल थिएटर में बड़ी संख्या में यह फिल्म दिखाई जानी थी। विवादित फिल्म पद्मावत अब राजस्थान सहित देश के सभी राज्यों में रिलीज हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपने अंतरिम आदेश में फिल्म पर चार राज्यों द्वारा लगाए प्रतिबंध को हटा दिया। जस्टिस मिश्रा का कहना रहा कि राज्य सरकारों का बैन अभिव्यक्ति की आजादी में बाधक है। कोर्ट का कहा है कि जब सेंसर बोर्ड ने फिल्म को मंजूरी दे दी है तो फिल्म कोई सरकार बैन कैसे लगा सकती है? गौरतलब है कि जौहर क्षत्राणी मंच कुछ दिन पूर्व ही चित्तौड़ दुर्ग स्थित जौहर स्थल पर जौहर करने की चेतावनी दे चुका है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्षत्राणी मंच ने जौहर ज्वाला कार्यक्रम की तैयारी प्रारंभ कर दी है। राजस्थान में राजपूत संगठनों के बाद मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार ने अपनी नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा है कि मनोरंजन के नाम पर फिल्म रिलीज करना कतई सही नहीं है। अगर ऐसे में लोगों का आक्रोश फूटता है तो वो वाजिब है।
निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली को भी अब करोड़ों रुपए कमाने का अवसर मिल गया है। लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि जिस रानी पद्मावती ने अपने सम्मान की खातिर 16 हजार स्त्रियों के साथ अग्निकुंड में कूद कर जान दे दी थी , आज उस बलिदान को मनोरंजन का साधन बनाया जा रहा है। सवाल अभिव्यक्ति की आजादी का नहीं है। सवाल देशवासियों की भावनाओं का है। ऐसी अभिव्यक्ति का क्या काम जिसमें हमारे ही बलिदान का मजाक उड़ाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया, उसमें सेंसर बोर्ड की मंजूरी को आधार बनाया गया। इसलिए अब सवाल यह भी है कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म को मंजूरी क्यों दी? सब जानते हैं कि इस समय देश और अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। यदि भाजपा सरकार चाहती तो सेंसर बोर्ड की मंजूरी को रुकवा सकती थी। सरकार को जब पता था कि फिल्म को लेकर देश भर में हंगामा हो रहा है तो सेंसर बोर्ड से मंजूरी क्यों दिलवाई? जाहिर है कि इस फिल्म के प्रदर्शन के लिए भाजपा सरकार भी दोषी है। दिल्ली को भी इस पर सोचना चाहिए। पुरे देश की भावनाएं आहत हुई हैं। हालांकि करणी सेना और राजपूत समाज के संगठनों ने अब भी फिल्म का विरोध करने का ऐलान किया है। लेकिन अब यह मुद्दा सिर्फ राजपूत समाज तक ही सीमित नहीं है। अब यह सर्व समाज का मुद्दा है। इसलिए राष्ट्रभक्तों को ही इस फिल्म का बहिष्कार करना चाहिए। जो लोग सिनेमाघरों में आग लगाने की धमकी दे रहे हैं वे कानून अपने हाथ में लेने के बजाए लोगों को फिल्म के बहिष्कार के लिए प्रेरित करें। जब देशवासी ही फिल्म देखने नहीं जाएंगे तो फिल्म अपने आप बैन हो जाएगी।