सेना पर सवालिया निशान लगाने वाले मानसिक दिवालिया लोगों के लिए मेरी ये रचना।
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भरम दिमागी कुत्तों का जब से सिंहों ने तोडा है।
दहशतगर्दी के रहबर को अलग थलग कर छोड़ा है।
तोड़ के चुप्पी भारत ने जब दुश्मन को ललकार दिया।
चहूँ ओर से घिरा पड़ोसी काम वो सीमा पार किया।
लेकिन ये क्या,अब इस पर भी होने लगी सियासत है।
सेना पर ही प्रश्न उठाने वालों तुम पर लानत है।।
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क्या सबूत दें जज़्बे का और भारत माँ की भक्ति का।
क्या प्रमाण दें हम अपने ही घर में अपनी शक्ति का।
भारत के एक एक सैनिक के दिल में भारत बसता है।
अपनों की उंगली उठने पर विश्व समूचा हँसता है।
झूठ बोलकर क्या पाएंगे,सत्य ही अपनी ताकत है।
सेना पर ही प्रश्न उठाने वालों तुम पर लानत है।
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कुर्सी तेरी भाषा पर ये बंदूकें शर्मिंदा हैं।
आकर देखो हम कैसे कैसे मौसम में जिंदा हैं।
हम सीमा पर जगते हैं तुम इसीलिए घर सोते हो।
हम हँस कर गोली खाते हैं तुम दो आंसू न रोते हो।
हम मुश्किल में रहते हैं,इसलिए ही तुमको राहत है।
सेना पर ही प्रश्न उठाने वालों तुम पर लानत है।
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जो महफूज़ हैं, भारत माँ के जयकारों से कतराएं।
और हम भारत माता की जय करते करते मर जाएं।
पोंगापंथी लोकतंत्र में साहस अब लाचारी है।
ये दुर्भाग्य है भारत का ख़ाकी पर खादी भारी है।
प्रजातंत्र है,शेरों पर गीदड़ कर रहे हुक़ूमत हैं।
सेना पर ही प्रश्न उठाने वालों तुम पर लानत है।
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सेना है तो भारत है,सेना है तो कश्मीर भी है।
सेना से मुल्क़ के ख़्वाब हैं तो उन ख़्वाबों की ताबीर भी है।
सेना के शौर्य से नेता जी ये दिल्ली अब तक दिल्ली है।
पाकिस्तान भी सेना के ही चलते भीगी बिल्ली है।
सेना है तो हिंदुस्तान का कोना कोना जन्नत है।
सेना पर ही प्रश्न उठाने वालों तुम पर लानत है।
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पत्रकार एवं कवि
अभिमन्यु पाण्डेय"आदित्य"
(नोएडा)
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