दूसरे चरण में उत्तरप्रदेश का क्या है सियासी समीकरण, देखें पूरी सियासी गणित

टेन न्यूज नेटवर्क

नोएडा (14 फरवरी 2022): उत्तरप्रदेश में सियासी घमासान के बीच आज दूसरा चरण का मतदान जारी है, आपको बता दें कि आज कुल 9 जिलें के 55 सीटों पर मतदान होना है, पश्चमि उत्तरप्रदेश के दलित एवं मुस्लिम समुदाय का प्रभावी माना जाता है ये सभी सीट।

किन 9 जिलों में हो रहा है चुनाव

आपको बता दें कि आज पश्चमि उत्तरप्रदेश के 9 जिलों के 55 सीटों पर होना है चुनाव, ये 9 जिले हैं सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, संभल,रामपुर, अमरोहा ,बदायूं,बरेली व शाहजहांपुर।इन 9 जिलों के कुल55 सीटों पर होना है चुनाव।

क्या है इन सीटों का जातीय समीकरण

आपको बता दें कि कुल 55 सीटों में से 25 सीट ऐसे हैं जँहा मुस्लिम समुदाय का प्रभाव माना जाता है, तो वहीं20 ऐसे सीट हैं जंहा दलित आबादी 20 फीसदी अर्थात निर्णायक भूमिका में है। तो कुल 45 सीटों पर मुस्लिम एवं दलित समुदायों का प्रभाव है वहीं 10 सीटों पर किसानों का मिला जुला प्रभाव भी दिख रहा है। इन क्षेत्र के7 सीटों पर जाट आबादी और ओबीसी भी खासे तादाद में हैं।

जानें किसका पलड़ा है भाड़ी

उत्तरप्रदेश में जो सियासी दल चुनावी मैदान में है मूल रूप से समाजवादी पार्टी ,राष्ट्रीय लोकदल एवं महान दल का गठबंधन है। तो वंही दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी और अपना दल का गठबंधन है।कांग्रेस और बसपा भी अपने बूते मैदान में है। अब अगर हम राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा के वोट बैंक में अकलियत की कम हिस्सेदारी है, वंही दूसरी तरफ कहा यह भी जाता है कि दलित और किसान भाजपा से नाराज दिख रहे हैं।इस दृष्टिकोण से दूसरे चरण का मतदान भाजपा के लिए चुनौतियों से भरा हुआ है।

वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन के लिए भी यह चरण इतना आसान नही है, क्योंकि आपको बता दें कि जँहा एकतरफ सपा के वोट बैंक में अकलियत की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को भी अकलियत का व्यापक समर्थन मिलता रहा है।वंही अगर बात दलित की हो तो स्वामी प्रसाद मौर्य और ओमप्रकाश राजभर जैसे दलित नेताओं को महागठबंधन के पाले में शामिल करने के बाद महागठबंधन निसन्देह मजबूत हुई है लेकिन दलितों की राजनीति करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती का भी इन क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव माना जाता रहा है, इस दृष्टिकोण से महागठबंधन के लिए भी यह चरण उतना आसान नहीं है ,कुछ राजनीतिक पंडितों का तो यँहा तक कहना है कि अकलियत एवं दलितों के वोट बैंक का बिखराव भारतीय जनता पार्टी के लिए लाभदायक होगी।बहरहाल किसको कितना लाभ मिलता है यह तो 10 मार्च को ही स्पष्ट हो पाएगा।

2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में क्या रहा है आंकड़ा

अगर हम बात2017 की करें तो 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बाबजूद भाजपा को इन 55 सीटों में 38 सीट पर कामयाबी मिली थी तो वहीं दूसरी तरफ सपा को 15 सीट पर कामयाबी मिली जिसमें 10 सीटों पर अकलियत के लोग हुए थे विजयी।

दूसरी तरफ 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी एवं राष्ट्रीय लोक दल का गठबंधन था, जिसमें बहुजन समाज पार्टी ने 11 लोकसभा सीटों में 4 लोकसभा सीट (अमरोहा, बिजनौर, नगीना और सहारनपुर)पर जीत हासिल की थी।वहीं समाजवादी पार्टी ने तीन सीट (रामपुर, मुरादाबाद और संभल) पर अपना परचम लहराया था।

दूसरे चरण के बड़े चेहरे

इनमें प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना (शाहजहांपुर सदर), जल शक्ति राज्य मंत्री बलदेव सिंह औलख (बिलासपुर), नगर विकास राज्य मंत्री महेश चंद्र गुप्ता (बदायूं), माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री गुलाब देवी (चंदौसी), आयुष राज्यमंत्री रहे और अब सपा के प्रत्याशी धर्म सिंह सैनी (नकुड़), वरिष्ठ सपा नेता आजम खान (रामपुर सदर) और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम (स्वार) प्रमुख हैं। दूसरे चरण में जिन क्षेत्रों में मतदान होने जा रहा है वहां मुसलमानों की आबादी काफी ज्यादा है और इन्हें समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है।