जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका एवं संसद की भूमिका भी हो : पूर्व न्यायाधीश

टेन न्यूज नेटवर्क

नोएडा (13 दिसंबर 2022): जजों की नियुक्ति में कोलेजियम व्यवस्था कितना उचित?, व्यापक चर्चा || चिंतना गोष्ठी

‘चिन्तना’ प्रबुद्ध वर्ग का चिंतन मंच के द्वारा ‘चिंतना गोष्ठी’ का आयोजन रविवार को ब्रिगेडियर राजबहादुर शर्मा के आवास पर किया गया।
इस गोष्ठी में चर्चा का विषय था “सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायलय में विद्यमान कोलेजियम व्यवस्था: कितना उचित, कितना व्यवहारिक“ इस गोष्ठी में प्रमुख वक्ता के रूप में न्यायमूर्ति शंभू नाथ श्रीवास्तव, पूर्व न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय उपस्थित रहे।

 

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित न्यायमूर्ति शंभु नाथ श्रीवास्तव ने सर्वोच्च न्यायलय व उच्च न्यायलय में विद्यमान वर्तमान जज की नियुक्ति के संबंध में विभिन्न न्यायिक निर्णयों के संबंध में विसतृत जानकारी दी| आगे उन्होंने कहा कि आज जो चर्चा पूरे देश में चल रही है और यहां भी हो रही है यह बहुत महत्वपूर्ण है और अगर जनता की राय बनती है तो जजों की नियुक्तियों की व्यवस्था में भी सुधार किया जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि संसद या कार्यपालिका जिसे भारत की जनता अपनी सार्वभौमिक शक्तियों के प्रयोग से चुनती है उसके क्या अधिकार हैं, इस संबंध में व्यापक चर्चा हो रही है कि क्या सर्वोच्च न्यायलय द्वारा भेजे गए नाम की समीक्षा करने का अधिकार सर्वोच्च कार्यपालिका (सरकार) तथा उस संबंध में संसद को अधिनियम बनाने का अधिकार है या न्यायपालिका द्वारा भेजी गई लिस्ट ही अंतिम मान ली जाए?

न्यायमूर्ति शंभु नाथ श्रीवास्तव ने कई उदाहरणों से यह स्पष्ट भी किया की कई बार कोलेजियम व्यवस्था के तहत जज की नियुक्ति होती है परंतु बड़ी संख्या में ऐसे जज की नियुक्ति हो जाती है जिन्हे समाज के वंचित तथा कमजोर वर्गों की वास्तविक समस्याओं की जानकारी न होने के कारण उनका उचित निदान नहीं हो पाता ।

 

कार्यक्रम में मौजूद एक सज्जन के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सामान्यतः मुख्यमंत्री की रिपोर्ट, राज्यपाल की रिपोर्ट या आईबी की रिपोर्ट कोई भी यदि खिलाफ होगी तो जज के रूप में नियुक्ति नहीं हो सकती है। सवाल का जवाब देते हुए न्यायमूर्ति शम्भू नाथ श्रीवास्तव ने कई उदाहरण दिए और इस बात का समर्थन किया।

साथ ही उन्होंने आगे कहा कि न्यायालय और सरकार के बीच इस खींचतान की शुरुआत इंदिरा गांधी जब दुबारा सरकार में आईं, तब हुई । उन्होंने न्यायपालिका पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया| उस संबंध में सर्वोच्च न्यायलय में एस. पी गुप्ता बनाम भारत सरकार, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत सरकार तथा राष्ट्रपति के रेफेरेंस द्वारा न्यायपालिका की रक्षा की जा सकी परंतु इन निर्णयों के पूर्व न्यायपालिका और कार्यपालिका मिल कर उच्च न्यायलय और सर्वोच्च न्यायलय के नियुक्तियों में भागीदारी के द्वारा नियुक्ति करते थे।

 

सरकार का कहना है कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में जूडिशल कमिशन के माध्यम से नियुक्ति की जाए जिसके अध्यक्ष चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ही हों परंतु कार्यपालिका का मत लिया जाना चाइए ।

इस विषय को लेकर सरकार तथा जनता के बीच नई व्यवस्था लागू करके इस प्रक्रिया को दुरुस्त करने की बात की जा रही है।
अपनी बात को विराम देते हुए न्यायमूर्ति शंभु नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि न्यायपालिका की गरिमा को बरकरार रखते हुए सरकार तथा संसद के जिन्हें भारत की जनता ने सार्वभौम शक्तियों का प्रयोग करते हुए चुना है उनका भी मत लिया जाना अत्यंत आवश्यक प्रतीत होता है और यदि कोई नाम कोलेजियम के माध्यम से नियुक्ति हेतु भेजा गया व राष्ट्र हित में नहीं है तो उसकी समीक्षा हो सकती है।

 

‘चिन्तना’ का कार्य यह है कि नोएडा के प्रबुद्ध बौद्धिक व्यक्तित्व के लोगों के साथ मिलकर हर महीने के दूसरे रविवार को किसी एक जगह एकत्र होकर किसी विषय पर चिंतन करना, उस पर विचार करना, जिससे कि लोगों के बीच में उस विषय पर जागरूकता बढ़ाई जा सके और लोगों के मन में विषय को लेकर जो भी सवाल हैं उनके जवाब दिए जा सकें।

चिन्तना द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में न्यायमूर्ति शंभू नाथ श्रीवास्तव, ब्रिगेडियर राजबहादुर शर्मा, ‘चिंतना’ के संस्थापक कृष्णा नंद सागर , अध्यक्ष डॉ लल्लन प्रसाद, योगेश जी, श्री अनिल किशन हांडा, प्रोफ़ेसर विवेक कुमार, श्री नरेश गुप्ता समेत और भी कई बौद्धिक व्यक्तित्व के लोग उपस्थित रहे।।