डीसीपी राम बदन सिंह ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर छात्रों , युवाओं , शिक्षकों और अभिभावकों को किया प्रेरित, पढ़िए उन्होंने क्या कहा ?

टेन न्यूज नेटवर्क

नोएडा (28 नवंबर 2023): शनिवार, 25 नवंबर को बाल भारती पब्लिक स्कूल, नोएडा ने अपना 31वाँ वार्षिकोत्सव समारोह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया। इस अवसर पर पुरस्कार वितरण भी हुआ। मुख्य अतिथि डीसीपी राम बदन सिंह (एफआरओ/साइबर/पुलिस लाइन/एंटी नारकोटिक) रहे।

डीसीपी राम बदन सिंह ने बाल भारती पब्लिक स्कूल नोएडा में विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों को प्रेरित करते हुए कहा कि आप सभी ने देखा कि बच्चों ने कितने अच्छे से परफॉर्म किया। मैं तो एक प्राइमरी स्कूल से पढ़ा हुआ हूं, गांव से पढ़ा हुआ हूं। जब मैं प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था तो हमारे गांव में बिजली भी नहीं आई हुई थी। मेरे पिताजी प्राइमरी के टीचर थे। वह हमेशा 9:45 बजे का समाचार सुनकर सो जाते थे। और सुबह 4:00 के बाद मैंने कभी उनको सोते हुए नहीं देखा और जब वह 4:00 बजे उठ जाते थे तो हम सबको उठाते थे और कहते थे कि पढ़ो। एक दिन मुझे याद है की लैंप में तेल नहीं था खत्म हो गया था, मेरे पिताजी ने कहा कि मैं तुम सबको एक कहानी सुनाता हूं। आज वही कहानी मैं आप सबके साथ साझा कर रहा हूं। मैं कक्षा 4 का छात्र था और उसे समय मैं उस कहानी का अर्थ समझता नहीं था। इस कहानी का क्या महत्व है? लेकिन आज जब मैं खुद दो बच्चों का पिता हूं, तो आज मैं कहानी का अर्थ समझता हूं। यहां इतने सारे पेरेंट्स और टीचर्स हैं, इसलिए आज मैं सभी के साथ कहानी साझा जरूर करूंगा। कहानी का क्या अर्थ है? महाभारत में हम सब लोग जानते हैं कि एक चक्रव्यूह रचा गया था और उस दिन अर्जुन कहीं दूर थे, चक्रव्यूह को भेदना केवल अर्जुन ही जानते थे। हम सभी जानते हैं कि जब यह हुआ कि आज चक्रव्यूह बनेगा उसे भेदगा कौन? तो पांडवों में बहुत चिंता थी। अभिमन्यु जो अर्जुन का बेटा था उसने कहा कि मुझे भेदना आता है। सात द्वार तो मैं तोड़ दूंगा लेकिन आठवां द्वार मुझे तोड़ना नहीं आता। तो भीम ने अपनी गदा उठाते हुए कहा कि सात द्वार तुम तोड़ देना आठवां मैं तोड़ दूंगा। आप जानते हैं कि अभिमन्यु ने सात द्वार तोड़ दिए और आठवीं द्वार में अभिमन्यु मर गया। अभिमन्यु मर गया तो अर्जुन और सुभद्रा (अर्जुन की पत्नी) के बीच बहस हुई कि गलती किसकी थी। अर्जुन ने कहा कि मेरी गलती थी। सुभद्रा ने कहा गलती मेरी थी। तो बताइए किसकी क्या-क्या गलती थी? सुभद्रा ने कहा कि जब बेटा मेरे गर्भ में था सातवें द्वारा तक तो मैं जागती रही आपको सुनते हुए लेकिन आठवें द्वार पर मैं सो गई। अगर मैं आठवी द्वार पर सो नहीं गई होती तो आज महाभारत का युद्ध भी खत्म हो जाता हमारा बेटा भी अजय हो जाता। और इस तरह से उसकी मृत्यु नहीं होती। अर्जुन ने कहा कि पिता होने के नाते यदि मैं तुम्हें यह कहानी सुना रहा था तो यह मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं तुम्हें सोने नहीं देता तुम्हें पूरी कहानी सुनाता और पूरी कहानी सुना कर सोने देता। इस कहानी से क्या सिखाते हैं हम? कहानी से यही सिखाते हैं हमें किसी भी चीज की केयर करना बहुत जरूरी है। सिर्फ बच्चे को जन्म दे देने से और स्कूल में भेज देने से वह एक अच्छा इंसान नहीं बन पाएगा। उसको अच्छा इंसान बनाने के लिए माता-पिता टीचर्स और फिर सोसाइटी तो फिर बाद में आती है। जिस बच्चें की केयरिंग मा-पिता के द्वारा होगी। स्कूल के टीचर्स के द्वारा होगी। वही अच्छा इंसान बनेगा। यह मेरी अपनी व्यक्तिगत सोच है। देखिए यह जो केयरिंग शब्द है, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। देखे जिंदगी में हम जिस भी चीज की केयर करेंगे। वह कभी खराब नहीं हो सकती बल्कि वह दिनों-दिन अच्छी होती चली जाएगी। यदि मैं अपने स्वास्थ्य को देखूं तो मैं कभी बीमार नहीं पडूंगा। मैं अपने बच्चों की देखरेख करूंगा तो मेरे बच्चे बहुत अच्छे हो जाएंगे। वैसे ही जैसे हम एक छोटा सा पौधा लगाते हैं रोज उसकी देखभाल करते हैं। वह एक वृक्ष बन जाता है। इसी तरह से हमें बच्चों की भी केयर करनी चाहिए। अब बच्चों को हमें अच्छी आदतें सीखनी चाहिए।

आगे डीसीपी राम बदन सिंह ने कहा कि बच्चों को बड़ा बनने के लिए बहुत बड़ी चीज नहीं करनी उसे बड़ा बनने और अच्छा इंसान बनने के लिए सिर्फ अच्छी आदतों की जरूरत है। क्या अच्छी आदतें हैं? बच्चों को सफाई से रहना सिखाएं। वह जितना खाना खाए उन्हें उतना ही दे जितना वह खा सके। भोजन को कभी भी थाली में ना छोड़े। अभिवादन करना सिखाए। मैंने पढ़ रखा है कि अगर कोई चीज हम 90 दिन तक करते हैं तो 91 दिन में हमारी प्रैक्टिस में आ जाती है। एक बार हम उसे अच्छी आदतें सिखा देंगे कि सुबह शाम ब्रश करो, अच्छे कपड़े पहनो, नहा धोकर साफ सुथरे रहो। अगर यह सब चीज हम उसको सिखा देंगे और यह केयरिंग हम अपने बच्चों की करेंगे तो एक दिन आपका बच्चा आत्मनिर्भर हो जाएगा। किसी पर भी निर्भर नहीं रहेगा वह खुद ही सारी चीज सीख जाएगा। दुनिया में कोई भी दूरी एक-एक कदम करके ही तय होती है। ये बात ज़िंदगी के हर फील्ड में लागू होती है। जो आप बच्चों सिखाएंगे वही वह सीखेगा। यदि बच्चा आपका कमजोर है या बहुत अच्छा है। तो आपको केयर करते रहिए। माता पिता ध्यान दें कि बच्चों को स्कूल में जो होमवर्क मिला है। वह जरूर पूरा करें और उसे इतना करवाते रहेंगे तो बच्चे की प्रोग्रेस बहुत अच्छी हो जाएगी। यदि जब वह अपने एक दिन का काम पूरा नहीं करता है तो वह पिछड़ना शुरू हो जाता है। इसमें माता-पिता दोनों में से एक की भूमिका तो बहुत अच्छी होनी ही चाहिए। अगर मां बहुत व्यस्त है तो पिता को ड्यूटी संभालनी चाहिए। यदि यदि पिता बहुत व्यस्त है तो मां को ड्यूटी संभालनी चाहिए। आपका बच्चा पढ़ता है तो आप उसको समय अवश्य दें और ऐसा करने से निश्चय ही आपका बच्चा एक अच्छा इंसान बनेगा। आप उसके आर्किटेक्ट हैं, उसको आप देखिए कि आपका बच्चा किधर जा रहा है। माता-पिता के बाद शिक्षकों का रोल शुरू होता है। आप बच्चे को अच्छे कपड़े सीखा बना सकते हैं, अच्छी आदतें सीख सकते हैं लेकिन आपके बच्चे की प्रोग्राम सही दिशा में हो रही है नहीं इसको नापने का पैमाना सिर्फ स्कूल के पास है। जो स्कूल के शिक्षक है उसके क्लास टीचर हैं। वह जानते हैं कि बच्चें को भली भांति जानते हैं कि बच्चा सही दिशा में जा रहा है या नहीं। बच्चा अच्छी दिशा में नहीं जा रहा है तो हर स्कूल में पीटीएम होती है। पीटीएम में पेरेंट्स को जरूर जाना चाहिए। टीचर से मिलना चाहिए। आप अपने बच्चों को सिर्फ इतना ही ना समझे कि आपने उसको अच्छे स्कूल में एडमिशन दिला दिया है तो अब स्कूल की जिम्मेदारी है कि मेरे बच्चे को अच्छा बनाएं। टीचर से बात करते रहे और यह जानने की कोशिश करते हैं कि बच्चा ठीक से पढ़ रहा है कि नहीं। तो इससे यह जो संबंध बनता है, स्कूल से पेरेंट्स का और पेरेंट्स से अपने बच्चों का, बच्चे का जो अपने स्कूल और पेरेंट्स से बनता है। डेवलपमेंट के लिए बहुत ही जरूरी होता है। तो बच्चों को आप हर चीज सिखाए। उसे अच्छे से कपड़े पहना सिखाएं।

आगे डीसीपी राम बदन सिंह ने कहा हमारी संस्कृति में कहा गया है श्लोक……
इसका अर्थ होता है। हम कपड़े कैसे भी पहन लें ऐसा नहीं है हमें कपड़े सोच समझकर पहने चाहिए क्योंकि पहले जो हमारी इज्जत होती है वह हमारे कपड़ों से होने वाली है।
फिर आगे उन्होंने उदाहरण दिया पितांबर धारी विष्णु थे तो समुद्र ने उन्हें अपनी बेटी का हाथ सौंप दिया और शंकर भगवान जिस वेश में रहते थे तो समुद्र से निकला जो विश था वह उनको दे दिया गया। तो इस तरह से जो हमारा कल्चर है मैं उससे जुडा भी रहना है। और बच्चों को अच्छी आदतें भी सीखनी है।

आगे मैं बच्चों से कहूगा कि अपना रोज का काम रोज पूरा करते रहिए। एक कविता मैंने प्राइमरी में ही पड़ी थी और मैं इस कविता से भी मैं बहुत सारी चीज सिखाता हूं। “पर्वत कहता शीश उठाकर, पर्वत कहता शीश उठाकर तुम भी ऊंचे बन जाओ। सागर कहता है लहराकर मन में गहराई लाओ। उठ उठ गिर गिर क्या कहती है तरल तरंग भर लो भर लो अपने मन में मीठी मीठी सी मृदुल उमंग। धरती कहती धैर्य न छोड़ो सर पर हो कितना ही भार, धरती कहती धैर्य न छोड़ो सर पर हो कितना ही भार। नव कहता है फैलो इतना तुम ढक लो सारा संसार। जय हिन्द।

उम्मीद करते हैं कि डीसीपी (एफआरओ/साइबर/पुलिस लाइन/एंटी नारकोटिक) राम बदन सिंह के व्यक्तिगत अनुभवों से विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों को प्रेरणा मिलेगी।।